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(११८ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
अध्यात्म-भंग
राग-वसन्त भांगडली अाज भली आई, भां० । विनय विवेक सो वसंत वणी है,
सरधा भूम है सुखदाई । भां०।१। तप भेदादि बहुत है तरवर,
अनुभव फल फूलन छाई । भां०।२। शुच संतोष नय जलपूरित है,
भविक नीव मिल मिल आई । भा०।३। फरुणा रस की कुंडी कीनी,
भाव भांगडली मझ ठाई । मा०।४। ज्ञान घोटे से घात घुमाई,
मन दृढता मिरचां लाई । भा०।५। विविध भेद नय चीर छणाई,
प्रेम पियाले भर पाई। भां०।६। शुक्ल ध्यान की सुरखी आई,
मार्नु जाण मफर खाई । भां०।७१ समकित जिन मंदिर में बैठे,
मूल सुगुण प्रतमा ठाई । भां०।८। तन मन से इकतारी लाई,
रंग तरंग गुण मणि गाई । भा० । । ।
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