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दादा श्रीजिनकुशलसूरि छन्द
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३ )
"तेरे सैंतीसै" समै, अवतरीया गुरु आप। सैंतालै संयम ग्रयो, पहुवी वध्यौ प्रताप ।३। स्वर मंत्र "सचितरे", पाम्यौ पुन्य पसाय । तखत वखत दीपावियो, राजे "खरतरराय" ।४। सकल सरि सिर सेहरो, मणधारी मछराल । मविजन प्रतिबोधी भला, दातो दीन दयाल ।। सुर सुख लह्या "नयासीयो", "देरावर" पुर देव । साची सकलाई निरख, सुरनर सारै सेव ।६। कलियुग मैं चढती कला, निरखी ने नरनार । थान थांन थिर थापना, पूजै विविध प्रकार ७
(छन्द-मोती दाम )
पूजो गुरु पाय सदा घर प्रेम, नमौ पट मास धरी – नेम । आराध्यां आवै श्री गुरुराज, कृपानिध कोड सुधारै काज।। लहै सुकुलीणी सदर नार, भली सुत जोड लहै श्रीकार। लाखीणी लच्छ वधै भंडार, कृपानिधन से जौ करतार ।। श्राधा ने आंख दीयै पंगु पाय, सूधै मन सेयै जो गुरु पाय । तृषातुर देखी पावै तोय, हठीलो साहिब हाजर होय ।१०। तरी बुडती आणै तोर, न होय कदापि त्यां जोखम नीर । दोषी नर देखी टाल दूर, चिता नैं भांज करै चकचूर ।११।
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