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बम्बई चिन्तामणिपाव-स्तवन
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मिथ्या मोह को भयो जब त्यागी,
सदगुण संभारे जब सागी । लटका० ।। थिर जिन घरे भए जब थागी,
लहिर 'अमर' तब जिनजी से लागी। लायक०।६। इति मल्हाररागे स्तवना, अष्टादशस्तुतिस्तोज्येरिदम् ।
चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन जय जय श्री जगनाथ, "चिंतामणि" चिरजयो । प्रगटयो पुन्य पंडूर, दोहग दूरै गयो। दरस सरस लहि देव, हुलसीयो मुझ हीयो । भल ऊगो ए माण, लाह अधिको लीयो॥१॥ जग त्रय नायक लायक, दायक सुख सदा । तूं पूछो जग नाथ, दीयै संपत सदा॥ परम दयाल कृपाल, किती कीरत' कहुँ । लख जीहे गुण ग्राम, कहो किण विध लहुँ ॥२॥ सेवित सुर नर इंद, चंद चरणेः रहै। देखी तुम्ह दीदार, सीतलता गुण लहै। जागै पाप संताप, ध्यान तोरो घरै। दुरगत जाणैः दर, सुगत. संपदः वरै॥३॥
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