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खरतरगच्छीय वाचकोत्तंस
श्री अमरसिंधुरगणि रचित बम्बई चिन्तामणि-पार्श्वनाथादि
स्तवन-संग्रह
श्री आदि जिनस्तवन जै बोलौ आदि जिनेसर की जै बोलो।
................... श.।
........'छवि छाजत है कंचन की राजै.। आदि राय नै आदि जिणेसर, आदि केवल महिमा इनकी ।।जै.। तरत आप भविजन कँ तारे, वाणि गरज है जिमघन की ४ाजै.। दीन दयाल कृपाल कही जै, पार न पा को गुण की शनै.। पूज रचावौ जिन गुण गावौ, अंगिया रचौ भल फूलन की।६.। आदीसर अलबेला साहिब, 'अमर' करै जै जै जिन की। जै.।
श्री नेमनाथ बोली सुख संपत दायिक, जगत्रय नायक, लायक नेम जिणंद । जादव कुल मंडण, दुःख विहंडण, प्रगट्यो पूँनिमचंद ॥ शिवा देवी जायो, कुमरी गायो, सूतक क्रम मिल कीध । सुरागर न्हवराव्या, सुरपत आया, सकल मनोरथ साध ॥१॥
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