________________
( २ ) वम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
क्रम महोच्छव कीधो, जग जस लोधो, समुद्र विजै सुपहांन । अपचर मिल आवै, हरष वधावै, गोरंगी करि गांन ।। भोजन भल भगतै, कीधो जुगते, पोषी सब परवार । बोलावै वाणी, चित हित आंणी, नवलो नेमकुमार ॥२॥ ब्रह्म व्रतधारी, जग हितकारी, सयल जीव सुखकार । जे अनंग में खंडी, रह्यो पग मंडी, छंडी राजुल नार ।। गिरवर गिरनारै, चढीय तिवार, दीख ग्रही गुण धाम । पंच महबय पालै, दोषण टाले, केवल वरीयो ताम ॥३॥ त(त्रि)पदि मनरंग, अधिक उमंगै, जंपै जगदाधार । गणधर गुणधारी, परउपगारी, सूत्र रचै सुखकार ॥ निज क्रम मल सोधे, भवि प्रतिबोध, पवित्र करै पृथमाद । क्रोधोदिक वारी, समताधारी, निज तीरथ कर आद ॥४॥ गए मुगत गिरंदै, सुरनर वंदै, ल है जिण सुक्ख अनंत । अवन्यासी वासो, जोतप्रकाशी, भांगै साद अनंत ॥ भवि भावन भावो, जिनगुण गावो, अधिक धरी आणंद । नेमीसर नमिय, पातक गमीय, 'अमर' लहो सुख कंद ॥शा
इति श्री नेमिनाथजीरी पूजारी बोली। नेमि-राजमती-स्तवन
(राग-खम्भायती) दीजीय वधाई श्री महाराज. आवै छै जी आवै छै जी राज. दीजियै० जादव जांनी आवै छै जी राज । दीजीयाए आंकणी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org