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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
निज सुभाव रस रंगै रमता,
राग दोस गंठी खोलो। जै बोलो.।३। दिल साचै रस रंग राची,
पाप पंक न रहै तोलो। जै बोलो.।४। महिमा तीन भुवन में मोटी, ..
सुरगुरु पिण न लहै तोलो। जै बोलो.।। सकल देव सिरताज सु सोहै,
दरस सरस लहि गुण बोलो। जै बोलो.।६। सुद्ध देव की सेव न जाणी,
"अमरसिंधुर" आतम भोलो। जै बोलो.।७।
चिन्तामणि-पाव-वीनती
राग-काफी बसन्त दरसण यो महाराज,
मो. पर महिर करीजै । दर० । दास खास जांणी नै जगगुरु,
सफल करो शुभ काज । दर० । मो पर० ॥१॥ अपणो जांणो चित हित प्राणो,
लाख वधारो लाजः ।
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