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( ६६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
सहिनानंदी साहबो रे वाल्हा,
हीयडलानो हार । मनवा० मेरे।। एतो अजरामर पद दायिक सही रे वाल्हा,
चिंतामणि चित धार । मनवा० । समरथ साहिब ए लह्यौ रे वाल्हा,
सुख संपत दातार । मनवा० मेरै०।६।
चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन
राग-छन्द बन्ध जय जय चिंतामणि जन नायक, पायक पद क जभृङ्गरे। सुर असुरादिक जासु फुणिंद, सेव करै घर रंग रे । जैजै.१॥ जगत्रय नायक शिव सुख दायिक, लायक जगदाधारंरे। अनुपम तनु छवि कंत उदारं, सोम निजर सुखकार रे।जैजै.२। पर उपगार प्रसिध जस धारं, नमत सुर नर नारं रे। अद्भुत गुण मणि महिर अपारं, कहीयै किम विस्तारं रे।जै जै.३॥ सुमता सारं दुक्ख निवारं, केवल कमला धारं रे। जोति रूप लोकोत्तम सारं, शिवा रामा शृङ्गार रे।जैजै.४। सकल देव मझ सोहै इन्दं, तारागण जिम चंदं रे। 'अमरसिंधुर' सेवे आनंदं, त्रिकरण सुध सुखकंदै रे।जै जै.
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