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बम्बई शिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
(
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चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन (पुनः वसन्त पूर्वली चाल )
या जिनराज सो देव नहीं,
तूं तो चिन्तामणि धर चित में । एरी सखि.। पर उपगारी जग परमेसर,
वसीए मोख नगर में ए.या. व.११॥ जग में देव बहुत फिर जोए,
घेर जोयो तन घर में ।ए. या. घे.।२। सकलंकित सुर सेव करत ही,
भूलत है क्यु भर में ।ए. या.भू.३। दीन दयाल जगतपति जिनवर,
तारत है भव जर में ए. या. ता.।४। साचे मन से सेव करत नित,
सुख संपत ता घर में ए. या. सु.।। "अमर" पाणंद ल है निस वासर,
प्रभु जी की महिर लहर में। ए. या.प्र.।६।
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