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बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह ( १३ )
नेमि-राजुल-स्तवन ( क्या बांन परी पिया तोरी रे, म्हांसु खेलण आया होरी
ए चाल मैं-वसन्त) मैं चतुर न कोनी चोरी रे, किम नाह तजी गयो होरी।
मैं चतुर । तिण तज० । प्रांकणी विण अपराध तजी क्यं वनता,
मोहन गयो मुख मोरी रे । किम मैं च. १॥ पशुवन की ते पीर पिछाणी,
___ गुनह विनां तजी गोरी रे । किम० मैं च०२। मात तात जादवपत वरजत,
गयो गिरनारै दोरी रे । किम० मैं च० ३॥ विरह विथा के दर विडारी,
रमियै रस रंग सोरी रे । किम० मैं च०४॥ प्रीत पुरांणी कबहुँ न तजीये,
किम रहीयै इक कोरी रे । किम मैं च०॥ 'अमर' कहै आनंद वधावो,
नेम राजुल मिली जोरी रे । किम० मैं च०६।
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