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(१२४) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
वाहे पेड पाक के अंगण, अंब मिलै किम आई। किधी जीवै जेह कमाई, धुरते मिलसी धाई ।रे जीव०।२। लिखीयो लेख टरै नहि टारे,मन न रहौ मुरझाई। 'अमर' एक धीरज मन धरता, बाधै रंग वधाई ।रे जीव०३।
चिन्ता-निवारण-गीत
राग-सामेरी रे जीव चिंता चित नवधरोयौ, लहिणो हुयसो लहिौ।रे जीव.। तं झुरझुर कैनीर क्य नाखत, अपनो एह न कहीयै। अपनों हो तो क्यं उठ जातो, साचौ ए सरदहीयै।रे जीव..१ लहिणायत ज्यु लेखें कारण, पर घर वार पठईयै। लेखै कीधैं वार न लावै, फिर घर पीछो पुलईयारे जीव.।२ ताहरौ नहीं, नहीं तुइनको, मोह न किनसै करीयै। 'अमर' एक श्रवचल ध्रम तेरो,या नित चित परीयारे जीव.३
मन-प्रबोध-गीत
राग-अलहीयो बेलावल भजय न क्यों भगवान,
मनारे तु भजय न क्यौं भगवान । उत्तम कुल लहि के श्रावक को,
भयो सब जुगत को जाण । मनारे।भाश
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