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प्रेरणा गीत
(१२५)
काम क्रोध अब करे है कुसंगी,
किहां गयो तेरो विज्ञान । लालच सै बहु चित ललचायो,
ध्रम धन की कर हांन । मनारे० म०२। अव ही चेत आतम गुण आदर,
सदगुरु की सुणि वांणि । मन वच काया कर एकांते,
धरम सुकल धर ध्यान । मनारे०म०३। सब संसार स्वारथीयो दीस,
परसिध तु पहिचान । 'अमर' एक है धर्म सखाई,
परमानंद निधान । मनारे भ०४।
प्रेरणा-गीत
राग-परभाती भज रे जीव निरंजन भोला,
क्या उपजावत अवर किलोला। भजरे । शिववासी अविचल अविनासी,
ज्ञानानंदी सुगुण अमोला।
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