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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
(५५ )
चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन
राग---जंगलो घणं समझायो घर मैं, मेरो मनुप्रो मान नहीं रे। घणं. मे.। सकलंकित सुर सेवतां, करता हरै न कर्म । सविषी विष कुंना हरै, भूला म पडौ भने । घणं. मे. ११ देव बहुल देखै दुनी, कैसे कही: ब्रह्मा विसन महेस वर, सरै न त्यां मैं काम । घf. मे.स राग द्वष या नहीं, मरम नहीं मन मांहि । वाजि तजै विषया रसै, विविध सेवीयै ताहि । वणं. मे ॥३॥ उपसम रस भरिया अमल, कमल धवल सम काय । सो "चिन्तामणि" चितधरो, कमणा न रहे काय । घf. मे.४। तरण तारण त्रिभुवन जयो, तेवीसम जग तात। "आससेन" कुल अवतरयो, “वामादे" जसु मात । घणं. मे. ज्ञानानंदी गुण भरयो, सहिजानंद सरूप। केवल कमला जिण लही, भल आतम गुण भूय । घj. मे.।६। परम दयाल कृपाल भल, सकल देव सिरताज ! पर उपगारी परम गुरु, महिर वान महाराज । घj. मे.१७) दरसण करतां दुख टलै, प्रणयां जाये पाप। जाप जपंता इक मनां, न रहै निकट संताप । घण. मे. समरथ मेरो साहियो, दयावंत दातार । "अमर" समर हित चित धरी, जपतां जै जै कार । घj. मे.।8।
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