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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
( ६३ )
सुन्दर सूरत मूरत निरखी,
अंग मै आणंद न माई । सवाई० बाधत०३। सकलाई साची जग निरखो,
नमन करै नर राई । सवाई० वाधत०४॥ साचो समरथ साहिब पायो,
कुमणा हिव नही काई । सवाई० वाधत०५॥ "अमर" आनंदै ए प्रभु सेवत,
संपद सनमुख आई। सवाई० वाधत०६।
चिन्तामणि-पार्श्व-स्तवन
चित हित धर "चिन्तामणि" भज रे। काम क्रोध है दुरगत दायक, तिसनां कुं अब तज रे । चित.।१। तन मन वचन करी इक ताने, सेवो भल पद कजरे। चित.।२। जायै करम अरी जिन सेवन, सिंह दरस जिम गजरे। चित.।३। भाव वरख वरखत जब जोरै, रहै कहो किम रज रे। चित.।४। जाको जस परमल जग जाचो, ज्यं देवल पर धज रे। चित.। 'अमर' लहो साहब आनंदे, जनम सफल कर निजरे। चित.।६।
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