________________
( 5 ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
ए प्रभु ने सुपसायथी सहेलडीयां,
"अमर" लहै पाणंद । रेगुण ॥॥
इति श्री चिंतामणि स्तवनम् ।
चिन्तामणि-पार्श्वनाथ-स्तवन सुध समकित सहिनाणी श्रापौ,
भव भय मोरा कापो जी। सुध०। श्री चिंतामणि चित हित धरकै,
शिव सुख मोहि समापो जी। सुध०१॥ करम अरी मुझ केड लगे है,
ता कुँ दुरै तापो जी । सुध० । खास दास मेरो है खासौ,
छापो एहरो छापो जी । सुध०।२। कोमल हग से देख कृपा निध,
महा भव्य गुण मापोजी । सुधः । "अमरसिंधुर" याचक है अपनो,
शिव सुख वेग समापो जी । सुध०३।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org