________________
( ११६ ) बम्बई चिन्तामणिपार्श्वनाथादि स्तवन-संग्रह
ज्ञान ध्यान की है या वैरण,
कबहु संग या को नहु कीजै। नींदड़०।२। पांच प्रमाद बडे है भाई,
वाको भी बेसास नहीं कीजै । नींदड़०।३। ध्रम धन हरण करत प्रीतडली,
कपटी को क्या संग कीजै । नींदड़० ।। चोर मुसत है लोक हसत है,
नींदड़ली कहो किम कीजै । नींदड़ ।। नींद निवारो धर्म संभारो,
छिनमे करम अरी छीजै । नींदड़०।६। नव पद ध्यावो नव निधि पावो
__ लायक लीला ज्यं लीजे । नींदड़० ७) "चिंतामणिजी" कै चरण कमल की,
'अमर' सेव मन सुध कीजै । नींदड़० ।।
अमल-नशा-गीत श्रमली नैं अमल भलौ आयो। पटणी पूरब घर निपजायो, सो अपणे नगरै आयो । अ.१॥ चटी देख के कुंत करायो, साहूकारे लिवरायो । अ.॥२॥ चोखी देखी भाव करायो, आरोग्यां ततखिण आयो। अ.॥३॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org