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बम्बई चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
(५७ )
श्री चिंतामणि चित मै वसीयो,
रसीयो चरण कमल चित लायो। 'अमरसिंधुर' पर सोम निजर कर,
सुख संपद द्यो वेग सवायो । जय०॥३॥
चिन्तामणिपार्श्व-स्तवन
राग-जंगलो ध्याया ध्याया ध्याया वे,
"चिंतामणि" चित मै ध्याया वे । चिं०। सुध समकित गुण के सुख दायिक,
लालच तिण चित लाया वे । चिं०॥१॥ सुद्धातम गुण की संभरणा,
चरण कमल चित लाया बे। चिं०॥२॥ सहिजानंद संपद सुविलासी,
प्रभुता प्रभु कहिवाया वे। चिं॥३॥ "अमर" समर ऐसे अलवेसर,
परब पुन्य पाया वे चि०॥४॥
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