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समझा और दोनों बन्धुओं से आज्ञा लेकर सहारनपुर लौट आये । रात्रि में घर पहुँचे तो घर के ताले टूटे पाये, अन्दर जाकर देखा तो चोर घुसे हुए थे जो उनके पहुँचने पर छतोंछत भाग गये । सामान पर दृष्टि डाली तो सब ठीक पाया । मित्र और सम्बन्धियों ने चान्दनपुर की घटना सुनी तो सब कहने लगे, "बाबू जी ! यह सब भ० महावीर का ही चमत्कार है" ।
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वीर भक्तिवश ही २८ अक्तूबर १६४० को वीर निर्वाण के उपलक्ष में श्री दिगम्बरदास ने दैनिक उर्दू मिलाप का सचित्र विशेष महावीर अङ्क निकलवाया, जिसे जैन - जैन सब ने बहुत ही पसन्द किया । अखिल भारतीय जैन महासभा के सभापति सेठ हुकमचन्द्र जी ने मिलाप के सम्पादकको विदाई दी' और अखिल भारतीय दिगम्बर जैन परिषद् के पत्र 'वीर' ने मिलाप के इस सर्व धर्म समभावों का बड़े सुन्दर शब्दों में स्वागत किया। इससे पहले किसी प्रसिद्ध दैनिक पत्र ने भ० महावीर के आदर्श जीवन तथा सन्देश पर कोई विशेष अङ्क नहीं निकाला था । भ० महावीर और उनकी शिक्षा पर जो सामग्री आज भिन्न-भिन्न पत्रों में दिखाई देती है, वह मिलाप की उदारता और बा० दिगम्बर दास के कथित परिचय का ही फल है ।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इतिहासकारों, अहिंसा प्रेमियों, सुखशान्ति के अभिलाषियों और भारत की प्राचीन संस्कृति तथा जैन इतिहास के जानने के शैदाओं के लिये प्रमाण सहित ऐतिहासिक यह पुस्तक बड़ी लाभदायक और उपयोगी है ।
Letter of Oct. 21, 1940 from Rajyabhushan, Rao Raja Rajya Ratan Sir Seth Sarup Chand Hukam Chand Kt to the Editor Milap. The idea of your proposed Shreemad Ehagwan Mahavira's Nirwan Ank is the novel idea to carry at each one's docr the most highly benificial and Peace-Giving doctrine of Ahinsa. I wish every success to your attemp and the renowned popularity of Milap edited under your able guidance".
२ वीर, देहली (१६ नवम्बर, १९४० ) पृ० ६ ।
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