Book Title: Tirthankar Charitra Part 2
Author(s): Ratanlal Doshi
Publisher: Akhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तीर्थकर चरित्र
उपस्थित थे। वे हंस के समान न्याय करने में निपुण थे । वसु नरेश स्फटिक-शिला की वेदी पर रखे सिंहासन पर आसीन थे। मैं व पर्वत, सभा में उपस्थित हुए और वाद का विषय प्रस्तुत कर निर्णय माँगा । राजाने सत्य की उपेक्षा कर के गुरु-पत्नी को दिये हुए वचन के वश हो कर कह दिया कि--"गुरु ने 'अज' का अर्थ--'मेढा' किया था।"
राजा के मुंह से ये शब्द निकलते ही, निकट रहे हुए और राजा के निर्णय की प्रतीक्षा करने वाले व्यंतर देवों ने राजा को सिंहासन से नीचे गिरा दिया और उस स्फटिकमय वेदिका के टुकड़े-टुकडे कर डाले। देवों की मार से मृत्यु पा कर वसु राजा नरक में गया। वसु का राज्याधिकार उसके पुत्र पृथुवसु ने ग्रहण किया। किंतु रुष्ट देव ने उसे भी मार डाला । इस प्रकार चित्रवसु, वासव, शुक्र, विभावसु, विश्वावसु, शूर और महाशूर, कुल आठ पुत्र राज्यासन पर बैठते ही मार डाले गये । नौवाँ पुत्र सुवसु, राज्य छोड़ कर नागपुर चला गया और बृहद्ध्वज नामक दसवाँ पुत्र मथुरा चला गया । नगरजनों ने अनर्थ के मूल ऐसे पर्वत को नगर से बाहर निकाल दिया, जिसे महाकाल असुर ने ग्रहण किया ।"
महाकाल असुर का वृत्तान्त रावण ने नारदजी से पूछा--" महाकाल असुर कौन था ?" नारदजी ने कहा--
"चारणयुगल नाम का एक नगर है। वहां अयोधन नामक राजा राज करता था। उसकी दिति नामकी रानी से 'सुलसा' नामकी पुत्री का जन्म हुआ। वह रूप-लावण्य से युक्त थी। युवावस्था में उसे 'इच्छित वर मिले'-इस विचार से राजा ने अनेक राजाओं को एकत्रित कर स्वयंवर का आयोजन किया । आमन्त्रित राजाओं में 'सगर' नाम का राजा, सभी राजाओं से विशेष सम्पन्न था। उसकी आज्ञा से मन्दोदरी नाम की प्रतिहारिका, अयोधन राजा के अन्तःपुर में बारबार जाने लगी । एक बार वह गृहोद्यान में हो कर अन्तःपुर में जा रही थी कि उसने देखा--रानी और राजकुमारी कदलिगृह में बैठी बातें कर रही है । उसके मन में उनकी बातें सुनने की इच्छा हुई । वह चुपके से उनके पीछे लताकुंज की आड़ में छिप गई । उसने रानी के मुंह से निकले ये शब्द सुने ;--.
"पुत्री ! तेरे पिताश्री ने तेरे वर के लिए अनेक राजाओं को आमन्त्रित किया है। उन सब राजाओं में से अपनी पसन्द का वर चुनने का तुझे अधिकार होगा । तू किसे पसन्द करेगी--यह मैं नहीं जानती । मेरी इच्छा है कि तू मेरे भतीजे मधुगि का वरण
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