Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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लिखित सं० १८५९ री जोड़ (ढा० ४)
ढाळ १५
दूहा
लिखत गुणसठा री हिवै, चौथी ढाळ सुचंग। मर्यादा पाळे मुनि, विमल चित्त जल गंगा ।।
'स्वाम थांरी उत्पतिया बुद्धि भारी, हं वारी२ हो स्वाम बांधी दृढ़ मर्याद उदारी। हूं वारी हूं वारी हो स्वाम आप शासण रा सिणगारी॥धुपदं॥ २ टोळा माहै उपगरण करै ते, परत पाना लिखे सागो।
परत पात्रादिक गण माहै जाचै, सर्व साथै ले जावण रा त्यागो।। ३ एक बोदो चोलपटो नै बोदी पछोवड़ी, बोदो रजोहरणो ताहि।
मुखपति नै वलि खंडिया उपरंत, साथै ले जावणा नाहि ।। गण री ने श्राय रा उपधि सहु, संतां रा ते किम राखै ।
और अंस मात्र ले जावण रा त्याग छै, अनंता सिद्धां री साखै॥ ५ कोई पूछे यां खेत्रा में रहिण रा, क्यूं पचखांण कराया।
तिण ने कहिणो रागा-धेखो बधतो जाण नैं, त्याग कराया सुखदाया।। ६ वलै कलैस नै वधतो जाण नै, उपगार घट तो जाणी।
इत्यादिक बहु कारण आलोची, त्याग कराया पिछाणी ।। ७ तिलोक चंदरभाण नै दशमो प्रायछित, दियां विण लेवा रा त्याग है ज्यांही।
जै तो दोनूं महा दगादार छै, मांहि लेवा जोग नांहि। वलै कोई याद आवै ते लिखणो, तिण रो पिण जे वेणो। ना कहिवा रा त्याग छै सहु रे, सर्व कबूल कर लेणो ।। सर्व साधां रा परिणाम जोय नै, रजाबंध कर सांधी।
यां कना सूं जूदो-जूदो कहिवारी, ए मर्यादा बांधी।। १० परिणाम जिण रा चोखा हुवै ते, या मर्याद तमाम ।
बलि यां सूंसा में आरै होयजो, सरमासरमी रो नहीं काम। ११ मूंहढे और नै मन में और, इम तो साधु नै 'न' करणो ज्यांही।
इण लिखत में खूचणो न काढणो कोई, और रो और बोलणो नांहिं।।
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१. लय-झिरमिर झिरमिर मेहा बरसै आंगण हो गयो आलो, २. पुराना।
लिखतां री जोड़ : ढा० १५ : ३९