Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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दोखो ।
९४ अनैक टाळोकर आगे हुआ था, केइ कह्यो किमाड़या पिण इसड़ो दिष्टांत दीधो नहीं सुणियो, इण ओ दृष्टांत दे घाली तोखो ॥ ९५ भिक्षु संथारो सीझौ ते वर्ष तणें, दिन करै टाळोकर उपवासो । उपवास न करै तो विगय छ टाळै, बले साधु कहै गुण रासो ॥ ९६ ते भिक्षु तौ किमाड़यो खोलाए बहिरता, तिण ऊपर भेषधारी । छोटी मोटी लुगाई रौ दृष्टांत देता, ओ पिण कहिवा लागौ अविचारी ॥ ९७ भेषधारी तो भिक्षु नै साधु न सरधै, तिण सूं लुगाई रो दृष्टांत देवै । पिण ओ तौ साध सरधै, दृष्टांत देइ इतरी पिण मूढ न बेवै ॥ ९८ ते टाळोकर ने कोई पूछा करै इम, कोइ छोटी लुगाई रो तेहो । जाणी संघटो करै ते साधु कै असाधु, जब कहै असाधु छै जेहो ॥ ९९ तूं छोटी लुगाई सरीखो कहै छै किमाड्यो ते किमाड्यो खोलाए आहारो । स्वाम भीखणजी लैता जिणां ने, तूं किम सरधै अणगारो ॥ १०० जब कहै ते तो किमाड़या रो लैता, जाणी नै सुद्ध ववहारो । त्यां तो दोष जांणी नही सेव्यो, तिण सूं ते सुद्ध अणगारो || १०१ तिण नै कहिणो त्यां दोष न जाणो, जो त्यांनै दोष नही लागै । तो हिवड़ा पिण साधु दोष न जाणे, त्यां रो व्रत किम भागे ॥ १०२ तिण टाणै तो रूपचंद टालोकर, किमाड़या में स्वाम भिक्षु तो निर्दोष जाण्यो, तिण सूं त्यां नै १०३ ज्यूं हिवड़ां टाळोकर किमाड़िया में, दोष पिण वर्तमांन गणी दोष न जाणै, तो त्यांनै १०४ इम पहिले दिन घर फरस्या, दूजै दिन और साधां अर्थे घर फरश्यावता, स्वाम १०५ बोल इत्यादिक भिक्षु सेवंता, ते स्वाम भीखणजी नै दोष न लागो, १०६ इम पूछ्यां थकां सुद्ध जाब न
दोष
बतायो ।
दोष नहीं
थायो ।
कहै छै
सोयो ।
दोष किम होयो । नवा साधा पासो । भिक्षु सुविमासौ ॥ निरदोष जाणी सोयो। तो हिवड़ा दोष किम होयो । आवै, जब अकल विकल मुख बौले ।
न्याय री बात कह्या बक १०७ शतक अष्टम अष्टमुदैशै बलि पंचमै ठाणा रे द्वितीय
ऊठै, मोह कर्म वस झोळे ॥ भगवती, बली सूत्र ववहार मझारो । उदेशै, प्रभु कह्या पंच ववहारो ॥ पंच ववहार सुणो भव जीवा । जीत पिछाणो ।
पंचमो आज्ञानो
आराधक जाणो ॥
१०८ आगम सूत्र ए पंच ववहार
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आज्ञा
नै धारणा, प्रवचतो साधु,
टाळोकरों की ढाळ :
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