Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 459
________________ १८४ आचार्य कहो दोषो । कहै ज्यूं करणो, त्यांरो वचन उलघंणो नाही । दसवैकालिक नवमे अध्ययने, दूजा उद्देशा मांहि ॥ १८५ उत्तराध्येन रै चौथे अध्ययनै निज छांदो रुध्यां कही मोखो । तौ जीत ववहार बांध्यो जे गणपति, तिण मांहै क्यूं १८६ आचारंग रे पंचमे अज्झयणे, चौथे उद्देशै आचार्य नी दृष्ट प्रमाण, प्रर्वत्ते मुनि १८७ सर्व कार्य में आचार्य नै, आगल करी ए आज्ञा तीर्थकर के री, तिणहिज पिछाणो । ठमे १८८ आचार्य रा ज्ञान प्रमाण, वर्त्ते मुनि गुणवानो । सुविधानो ॥ गुणधारी । विचारी ॥ १९१ किमाड़ियादिक जीत पिण आपणी मतिकरि नही प्रवर्त्ते, तिणहिज ठाम १८९ इत्यादिक बहु सूत्र विषै कह्यु, गणपति जे तेह तणां अभिप्राय प्रमाण, प्रवर्त्तेतुं १९० ते माटै स्वाम भीखणजी उजागर, आचार्य निरदोष जांणी जीत त्यां बांध्यो, जोय लो हृदय त्यांरो, तिण नै क्यूं दो खोटा दृष्टांतो। छोटी लुगाई रो सरीषो कह्यो ते, प्रत्यक्ष दुर्गति पंथो॥ १९२ जीत ववहार बांध्यो, तिण री आज्ञा दीधी जिनरायो । जिण जीत ववहार भणी नहीं मान्यो, तिण प्रभु वच मान्या नाह्यो । १९३ इम सांभळ उत्तम नर नारी, प्रभु कह्या पंच थापो, थे अंतर आंख बेसै, तो केवळियां थापी, मति कोइ झूठ सोहरी, भोगवणी अति राखौ, छोड़ देवौ झकझौड़ी ॥ ववहारो । उघाड़ो॥ नै भळावो । तेह विषै कोइ दोष म १९४ कदाचित् कोइ हीयै न पिण किमाड़िया में दोष १९५ असाता वेदनी बांधणी ते माटै मति सवळी लगावो ॥ दोहरी । जांणो । आणो ॥ १९६ एक दिवस तो निश्चै करि नै, परभव मांहि ते माटै ऊंची तांण न करणी, थे दुख तणों डर १९७ संवत् उगणीसै वर्ष तेतीसै, सुदि बीज भिक्षु भारीमाल ऋषराय प्रशादै, जयजश चैत मास जांणो । कल्याणो ॥ हर्ष गुणखाणो ॥ विचरणो । निरणो ॥ गुणमाळो । निहालो || टाळोकरों की ढाळ : ४३३

Loading...

Page Navigation
1 ... 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498