Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 490
________________ टहुका शेख अब्दुल मुफ्त रो साथी १३ (पृष्ठ १६१ से संबंधित) एक शहर के बाहर धर्मशाला के पास कुछ भटियारिनें रहती थीं। राहगीर उनसे भोजन पकाते थे। वहां पर शेख अब्दुल नामक मुफ्तखोर रहता था। ज्यों ही यात्री भटियारिनों से रसोई बनवा कर भोजन के लिए बैठते त्यों ही वह बिना बुलाये जा धमकता और भोजन को चट कर जाता । यात्रियों के बचा खुचा हाथ आता। अच्छे गहने कपड़े देखकर उसे कोई कहने का भी साहस नहीं करता था। यह उसका रोज का धन्धा था। इस कारण वह 'शेख अब्दुल मुफ्त' के नाम से प्रसिद्ध हो गया । भटियारिनें यात्रियों को पहले से ही जता कर एक व्यक्ति का अधिक भोजन बनवाने के लिए कह देती थी । एक दिन एक पठान आया। भटियारिनों ने जब शेख के लिए भोजन बनाने का पूछा- तो उसने कहा- वह मेरे क्या लगता है? अगर जबरदस्ती करेगा तो मैं उसे देख लूंगा। तुम भोजन परोसो । सुरक्षा के लिए पास में अपने नये जूते रखकर बैठ गया । इधर दिन भर का भूखा शेख चक्कर लगा ही रहा था ज्यों ही भोजन की थाली आई कि उचक कर आ बैठा और दबादब भोजन करने लगा। क्रोधित पठान ने आव देखा न ताव जूते हाथ में लेकर मरम्मत करनी शुरू कर दी। पर शेख को तो इसकी परवाह ही नहीं थी। पूरा भोजन करके हाथ धोते हुए बोला- आज तबियत खुश भोजन हुआ है। पठान -यह कैसे ? शेख - मैं बचपन में भोजन नहीं करता तब मुझे मेरे माता पिता जूते मार-मार कर भोजन करवाते थे। आपने आज मुझे वैसा ही भोजन करवाया। यह सुनकर, पठान ने सोचा- यह तो महा निर्लज्ज है, और दूसरा आटा मंगवा कर रोटियां बना कर खाई । ४६४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था 1001

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