Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१४.(ढाळ ३ तथा ६ से संबंधित)
रूपचंदजी अखेरामजी द्वारा आचार्य भिक्षु में निकाले गये दोषों की विगत :
१ रजूहरण सूं माखी उडावणी नहीं। २ सूर्य उगां विण पडिलेहण करणी नहीं। ३ पांणी मोरो चुकावणो नहीं। ४ गोचरी नीकळ्या पछै ठिकाणे आंयां पेहिलां कठेइ वैसणो नहीं। ५ बायां ने थानक में बेसण देणी नहीं। ६ बायां सू चरचा बात करणी नहीं। ७ बायां साह्मो जोवणो नहीं। ८ बायां नै वैसाणे ते आछो खावा रे अर्थे । ९ आर्यां ने थानक में बेसाणणी नहीं। १० आर्यां सूं चरचा बात करणी नहीं। ११ आर्यां ने सूतर री वाचणी देणी नहीं। १२ आर्यां साह्मो जोवणो नहीं। १३ कारण विना आयाँ नें आहार देणो नहीं। १४ वैतकल्प में जाबक आर्यां ने साधा रे थानक वरज्या छै १७ बोल।
इम साधु नैं पिण १७ बोल आर्यां रै थानक वरज्या। १५ रात री आर्यां ने नेरी उतारे। १६ रात री बायां ने थानक में बैसारे नाथदुवारे। १७ गृहस्थ साथे विहार करै। १८ गृहस्थ साथे गोचरी जाए। १९ गृहस्थ जागां जोवै। २० गृहस्थ आय ने जागां बतावै। २१ गृहस्थ आय ने कहै अमकडियै घर अनादिक छै। २२ रोगिया में नितपिंड न लेणो। २३ खेतसीजी रे आथण रा तीन च्यार दिस दाल में जाता। २४ रोगी रै वासते आण्यो ते वधै तो बीजां नै खाणो नहीं।
परिशिष्ट : परम्परा री जोड़:४६५