Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१२. (पृष्ठ ६१ टिप्पण ४ से संबंधित)
लेखपत्र
मैं सविनय बध्दांजलि प्रार्थना करता हूं कि श्री भिक्षु, भारीमाल आदि पूर्वज आचार्य तथा वर्तमान आचार्य श्री तुलसीगणी द्वारा रचित सर्व मर्यादाएं मुझे मान्य है। आजीवन उन्हें लोपने का त्याग है ! आप संघ के प्राण हैं, श्रमण परम्परा के अधिनेता है, आप पर मुझे पूर्ण श्रद्धा है। आपकी आज्ञा में चलने वाले साधु-साध्वियों को भगवान महावीर के साधु-साध्वियों के समान शुद्धि साधु मानता हूं। अपने आपको भी शुद्ध साधु मानता हूं। आपकी आज्ञा लोपने वालों को संयम मार्ग के प्रतिकूल मानता हूं।
(१) मैं आपकी, आज्ञा का उल्लंघन नहीं करूंगा। (२) प्रत्येक कार्य आपके आदेश पूर्वक करूंगा। (३) विहार चातुर्मास आदि आपके आदेशानेसार करूंगा। (४) शिष्य नहीं करूंगा। (५) दलबन्दी नहीं करूंगा। (६) आपके कार्य में हस्तक्षेप नहीं करूंगा। (७) आपके तथा साधु-साध्वियों के अंशमात्र भी अवर्णवाद नहीं बोलूंगा। (८) किसी भी साधु-साध्वी में दोष जान पड़े तो उसका अन्यत्र प्रचार किये बिना
. स्वयं उसे या आचार्य को जताऊंगा। (९) सिद्धान्त मर्यादा या परम्परा के किसी भी विवादास्पद विषय में आप द्वारा किये
निर्णय को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करूंगा। (१०) गण से बहिष्कृत या बहिर्भूत व्यक्ति से संस्तव नहीं रखूगा। (११) गण के पुस्तक पन्नों आदि पर अपना अधिकार नहीं करूंगा। (१२) पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनूंगा। (१३) आप के उत्तराधिकारी की आज्ञा सहर्ष शिरोधार्य करूंगा।
पांच पदों की साक्षी से मैं इन सबके उल्लंघन का प्रत्याख्यान करता हूं। मैंने यह लेख-पत्र आत्मा-श्रद्धा व विवेकपूर्वक स्वीकार किया है। संकोच, आवेश या प्रभाववश
नहीं।
स्वीकर्ता..
संवत्"..."मास......"तिथि........
परिशिष्ट : गणपति सिखावण : ४६३