Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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६ आचार पाळा छां तिण रीत चोखो पाळणो। इण आचार माहै खामी जाणो तो अबालूं कहि देणो। पछै मांहो मां ताण करणी नहीं। किण ही नै दोष भास जाय तो बुधवंत साध री परतीत कर लेणी, पिण खांच करणी नहीं।
७ भारमल जी री इच्छा आवै जद गुर भाइ अथवा चेला नै टोळा रो भार सूंपे जद सर्व साध-साधव्यां नै उणरी आगन्यां माहै चालणो एहवो रीत परंपरा बांधी छै। सर्व साध-साधवी एकण री आगन्या माहै चालणो। एहवी रीत बांधी छै साध-साधव्यां रो मार्ग चालै जठा तांइ।
८ कदा कोइ असुभ कर्म रे जोग टोळा मां सूं फारा तोड़ो करै नै एक दोय तीन आदि नीकळे, घणी धुरताइ करै, बुगलध्यानी हुवै, त्यांनै साध सरधणां नहीं। च्यार तीर्थ माहै गिणवा नहीं। त्यांनै चतुरविध तीर्थ रा निंदक जाणवा, एहवा नै वांदै ते जिण आग्या वारै छै।
९ कदा कोइ फेर दिख्या लै, ओरां साधां नै असाध सरधायवा नैं तो पिण उण नै साध सरधणो नही। उण नै छेरवियां तो उ आळ दे काढ़े। तिण री एक बात मानणी नहीं, उण तो अनंत संसार और कीधो दीसै।
१० कदा कर्म धको दीधां टोळा रा साध-साधव्यां रा अंसमात्र हुंता अणहुंता अर्णवाद बोलवा रा अनंता सिद्धां री नै पांचूं इ पदां री आण छै पांचूं इ पदां री साख सूं पच्चखांण छै।
११ किण ही साध-साधव्यां री संका पडै ज्यूं बोलण रा पचखांण। साधारण नीति
कदा उ विटल होय सूंस भांगै तो हळुकर्मी न्यायवादी तो न मानै उण सरीखो विटळ कोइ मानै, तो लेखा में नही।
१२ हिवै किण ही नै छोड़णो मेलणो परै, किण ही चरचा बोल रो काम परै तो बुधवान साध विचार नै करणो। बलै सरधा रो बोल पिण बुधवंत हुवै ते विचार नै संचै वैसाणणे। कोइ बोल न बैसे तो ताण करणी नहीं केवळिया नै भळावणो। पिण खांच अंसमात्र करणी नहीं।
... १३ बीस कोष चालीस अथवा अळगो दूर चोमासो उतरियां अथवा सेखाकाळ कपड़ो जाचियो हुवै तो आप रै मते फार तोड़ नै बैंट-बैंट नै पैहरणो नहीं। कदा जरूर रो काम पड़े तो जाडो-जाडो तो बांट लेणो। महीं तो आचार्य नी आगन्या बिना बांटणो नहीं। महीं तो आचार्य आगै आण नै मेलणो। आचार्य जथा जोग इच्छा आवै ज्यूं दे, ते लेणो,पिण तिण री पाछी बात चलावणी नही। इण नै महीं दीधो, इण नै मोटो दीधो, इम कहिणो नहीं।
१४ किण नै कर्म धको देवै ते टोळा सूं न्यारो परै, अथवा आपहीज टोळा सुं न्यारो हुवै, तो इण सरधा रा भाई बाई हुवै तिहां रहिणो नही। ४५२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था