Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 481
________________ सं० १८२९ रो लिखत ( अखेराम जी रो) ९. (पृष्ठ ४४ से संबंधित) अखेराम जी रा टोळा मांहै आवण रा परिणाम साधपणो पाळण रा परिणांम दीठा, पण अप्रतीत धणीं ऊपनी तिण सूं एतली परतीत पूरी उपजावै अनंता सिद्धांरी साखे तो माहै लेणे ॥ १. सभाव आपरो फेरणो २. बडा रे छांदे चालणो । ३. आचार चोखो पाळणो । साधां रो आचार दीठाईज छै । ४. ए टोळा सूं न्यारा थांय तो च्यार आहार नां पचखांण करै तो माहै ल्यां । ५. खूंचणो काढ नै अळगा हवैण रा पचखांण करै तो ल्यां । ६. साधां री इच्छा आवे तो संलेखणा संथारो करावै जद करणो, ना कहण रा पचखांण करै तो ल्यां । ७. सभाव में धेठापणों देखे अथवा अवनीतपणों देखे, अथवा साधां रे चित न बेसै, इत्यादिक अनेक बोल सूं छोड़े तो च्यार आहार मुख माह घालण रा पचखांण करै तो ल्यां । ८. टोळा माहै पानां लिखे ते साधां रा । ९. साध साधवी श्रावक श्रावक - त्यां नै खूंचणो, दोष, हूंती अथवा अणहूंतो पेला नै भास जाए तो पेला रा कह्या थी प्राछित लेणो, ना कहण रा पचखांण करै तो ल्यां । १०. जिण साध साथै मेलियां तिण रा हुकम प्रमाण चालणों, आगन्या लोपणी नहीं । ११. जे कोइ साध साथे ले जावै घणो रजाबंध (करणो विश्वास) उपजै ज्यूं चालणो, अंस मात्र ओळंभो आवै ज्यूं न करणो । आ प्रतीत पूरी उपजावणी । १२. आज पांचमां आरा मांहै भारीकर्मा जीव घणां छै, त्यां सूं पोते आचार न पळै, सभाव न फिरै, पछै कर्म उदै एहवी भाषा बोले, एकला वैण रा परिणांम हुवै तरै बोले–‘टोळा माह्रै साधपणो दीसै नहीं, हूं किम माहै रहूं,' इम कही अनेक उपद्रव करै, अनेक अवर्णवाद बोले छै, तिम करण रा पंचखांण करै तो ल्यां । १३. मांहोमांहे सरधा में किण ही बोल रो फैर पड़े तो और बुधवंत साधां री परतीत सू मान लेणों, नां कहण रा पचखांण करै तो ल्यां । १४. ए आचार पाळा छां, जिण सूं विरुद्ध चालणो नही, जे कोइ चूक में पड़े तो ओरां साधा नै कहिणो, पिण तांण कर नै तोरण रा त्याग करै तो ल्यां । परिशिष्ट : लिखता री जोड़: ४५५

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