Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 480
________________ सं० १८५९ रो दूसरो लिखत (विगय आदिक री मर्यादा रो) ८. (पृष्ठ ४१ से संबंधित) १ एक दिन में दोय पइसा भर घी लेणो। २ च्यार पइसा भर मिष्ठांन-खांड, गुळ, पतासा, मिश्री, बूरौ, ओळा का लाडू ३ अध सेर दूध, दही, खीर, अधसेर आसरै धनागरो, ४ खाजा, साकुली, पापरीयांदिक पाव सीरा, लाफसी, चूरमादिक भेळी पावरीया माहिली थोड़ी-थोड़ी आवै तो पाव रा उनमान लेखव लेणा। ५ उपवास रे पारणे च्यार पइसा भर घी बीजा बोल उतराइज। ६ बेला तेला चोला रे पारणै घी छ पइसा भर बीजा उतराइज। ७ पांच उपवास आदि मोटी तपसारै पारणै ८ पइसा भर घी बीजा उतराइज। स्पष्टीकरण कदाच टका भर सूं अधिकेरो खाय तो बीजा दिन घी न खाणो। और दूध दही सुंखरीयादिक नी मर्यादा उपरंत अधिको खावै जद बीजै दिन जे जे वस्तु भोगवण रा त्याग छै। कदाचित दोय तीन दिन विचे विगै न खाधो हुवै तो घी च्यार पइसा भर रो आगार छै। __कदाच वांटता-वांटता अधेला पइसा भर वधै, तो एकण नै दे काढणों। तिण नै उतरो परो देणो, दूजै दिन पछै देण रो दावो नही। कदाच आहार अणमिलियां आटादिक रो जोग मिलियां थी खांड गुळादिक अधिको लेवे तो अटकाव नहीं। आचार्य कन साधु-साध्वी शेष काळ अथवा चोमासो रहै, त्यां रे विगै पांच नै सूंखरीयादिक री मर्याद नै सूंस नहीं है। साध-साधवी घणा हुवै थोड़ा हुवै कदेइ आहार थोड़ो आवै कदै घणो। तिण रो तो आचार्य अवसर देख लेसी, त्यांरो कोइ बीजा साध नाम लेण पावै नहीं। ८ आगन्या बिना शेखे काळ चौमासे रहै तिण रे जितरा दिन रहै जितरा दिन पांचूइ विगै न सूंखड़ी रा त्याग छै। ए सूंस जाव-जीव तांइ छ। ९ कोइ टोळा मां सूं टकै अथवा वारै काढे तो पिण ए सूंस जावजीव रा छै। यूं कहिणो नहीं-"म्हारै तो यां भेळा थकां सूंस था, पछै म्हारै सूंस कोइ नहीं," यूं कहिण रा त्याग छ। १० कदाच कोइ लोळपी थको खावां रे वास्ते बारै नीकळ तिण रे पिण ए सूस छै। ४५४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था

Loading...

Page Navigation
1 ... 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498