Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 482
________________ १५. ओरा साधां री इच्छा आवै ज्यूं करणो, पाछो ओरो उत्तर करवा रा त्याग करै तो ल्यां । १६. अथवा एतावता टोळा सूं न्यारो होणो नहीं, एकलो अथवा दोयां तीनां आदि देइ नै पिण अलगो वैणो नही, एहवा पचखांण करै तो ल्यां । १७. सर्व शरीर साधां रे कारजपणे, पेला नै अणहुंता आप रा मन सूं ढीला तर तीन आहार त्याग करणो, पिण किण सूं मिल नै टोळा माहै भेद पाड़ नै अळगो न हुणो, ए पचखांण करै तो ल्यां । १८. सझाय तवन सूत्र बखाण रो कहै तो छती सकत ना कहण रा पचखांण करै तो ल्यां । १९. अंसमात्र धेठापणो तुरंग खिण रंग खिण विरंग न करणो । २०. इत्यादिक अनेक बोल बलै याद आवै तो बलै लिख लेणो, तेहनां नां कहवा रा पचखांण करै तो ल्यां एहवी पूरी परतीत उपजावै तो सगळां नै परतीत उपजै । २१. संवत् १८२९ रा फागुण सुदी १२ वार बहस्पत लिख ऋतु भीखन गांव सीमध्ये | २२. ए लिखत श्री थिरपाल जी फतेचंद जी हरनाथ जी भारमल जी तिलोकचंद पण सुणायो । २३. ए पाछै कह्या लिख्या ते सगळाइ बोल अखेराम सुण नै अंगीकार कीधा । २४. चारित संघाते पचखांण कर नै साधां नै परतीत उपजाई । ऊपर लिख्यो सही । लिखत अखेराम । ४५६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था

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