Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 455
________________ १२२ चौथे ठाणै आर्यांवा नै, पछैवड़ी च्यार कही जग तारो। एक पिछेवड़ी बे कर चौड़ी, एक चोड़ी कर च्यारो॥ १२३ दोय पिछेवड़ी तीन हाथ नी, सूत्र विषै वच एहो। जीत ववहार थी च्यारूं पिछेवड़ी, चौड़ी तीन हाथ नी करेहो।। १२४ बावन अणाचार कह्या सूत्र में, अंजन घाल्यां अणाचारो। कारण अकारण रो नाम न खोल्यो, समचै वोँ जग तारो॥ १२५ कारण पड़िया अंजन घालै, साधु नै दोष नै लागै। ___ए पिण जीत ववहार थी जाणो, साधु रौ व्रत न भागै ।। १२६ सुंगध सूंध्यां अणाचार कह्यौ प्रभु, बलि लियां अणाचारो। ते जीत ववहार थी कारण सेवें, दोष नहीं छै लिगारो।। १२७ गळा हेठला जे केश उपाइँ, तौ सूत्र में कह्यो अणाचारो। ते जीत ववहार थी कारण पड़यां थी, उपाइयां नहीं दोष लिगारो॥ १२८ दंत धोयां अणाचार कह्यो प्रभु, ते कारण पड़िया सोयो। जीत ववहार थी दांत धोवै, तो दोष नही छै कोयो। १२९ आरीसादिक में मुख देखै तो, अणाचार अवलोयो। जीत ववहार थी कारण पड़िया, मुख देख्यां दोष न जोयो॥ १३० नित्य पिंड. लिया अणाचार कह्यो प्रभु, ते जीत ववहार थी जासो। कारण पड़िया नितपिंड लैवै, दोष न कहियै तासो।। १३१ सूत्र में तो समचै नित्य पिंड वर्यो, कारण पड़िया लेणो कह्यो नाहि। जीत ववहार थी स्वाम भीखणजी, लेणो कह्यौ कारण त्यांही ।। १३२ इमहिज नवा आया मुनि पासै, पहिलै दिन फरस्था घर फरसावै। इमहिज अन्य क्षेत्रे लियै नित्य पिंड, ए जीत ववहार कहावै ।। १३३ इमहिज चौमासा ऊपर चौमासो, करै बड़ां रै लारै। ए पिण जीत ववहार भिक्षु रो, बुधवंत न्याय विचारै ।। १३४ छोटो किमाइयो खोलाइ वहिरै, असणादिक चिहुं आहारो। ए पिण जीत ववहार बाध्यौ छै, स्वामी भीखणजी सारो।। १३५ सवा हाथ रे आसरै बारी खोली, नै सैहर कांकरोली मांह्यो। स्वाम भिक्षु निशि दिशां पधारयां, दोष कह्यो नहीं ताह्यो।। १३६ आर्यावां विहार करी नै आवै, उतरै खोली किमाड़ो। अथवा तालो खोली नै उतरै, ए भिक्षु बांध्यो जीत ववहारो॥ १३७ सोजत सैहर में सात ठाणां सु, अज्जा बरजूजी आया। स्वाम भीखनजी किमाड़ खोलाए, साथै आय उतराया।। टाळोकरों की ढाळ : ४२९

Loading...

Page Navigation
1 ... 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498