Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तेरहवीं हाजरी
पांच सुमति तीन गुप्ति पंच महाव्रत अखंड आराधणा । ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहणो । आहार पाणी लेणो ते पकी पूछा करी लेणो । सूजतो आहार पाणी पिण आगला रो अभिप्राय देख लेणो । पूजतां परठवतां सावधानपणे रहणो । मन वचन काया गुप्त में सावचेत रहणो । तीर्थंकर नी आज्ञा अखंड आराधणी । श्री भीखणजी स्वामी
सिद्धान्त देखने श्रद्धा आचार प्रगट कीधा - विरत धर्म ने अविरत अधर्म, आज्ञा मां धर्म, आज्ञा बारे अधर्म । असंजती रो जीवणो बंछे, ते राग मरणो बंछे, ते राग मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो वंछे ते वीतराग देव नो मार्ग |
तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी - संवत् १८४१ रे वरस भीखणजी स्वामी मर्यादा बांधी-ते साध - साध मांहोमांहि भेळा रहे । तिहां किण ही साध ने दोष लागे तो धणी ने सताब सूं कहणो । अवसर देखने। पिण दोष भेळा करणा नहीं, धणी ने कह्यां थका प्राछित लेवे तो पिण गुरां ने कहि देणो । जो प्राछित न ले तो प्राछित रा धणी ने आरे कराय ने जे जे बोल लिखने उण ने सूंप देणो । इण बोल रो प्राछित गुरथांने देवे ते लीजो। जो इण रो प्राछित न हुवे तो ही कहिजो । थे गाळागोळो कीजो मती । जो थे न
तो माहरा कहिण रा भाव छै । है थां रा दोषां रो आगो काढ़सूं नहीं । संका सहित दोष भासे तो संका सहित कहिसूं । निसंक पणे दोष जाणूं छू ते निसंकपणे कहि सूं । नहीं तो अजे ही पाधरा चालो इम कहि देणो, पिण दोष भेळा करणा नहीं। जो उ आरे न हुवे तो ग्रहस्थ पक्का हुवे त्यां ने ज़णावणो । उण बेठाहीज कहिणो, पिण छांने न कहिणो। ए तो चोमासो बंधियो काळ हुवे जब छै । शेषे काळ हुवै तो किण ही ने कहिणो नही। गुर हुवे जठे आवणो । पिण गुर कने बेदो घालणो नहीं। गुर किण ने साचो करे । किण ने झूठो करे । गुर तो इण बात में नहीं। एलांण सूं कदाच एक ने झूठो जाणे, एकण ने साचो जांणे। तो पिण निश्चे नहीं । ते किण विध प्राछित देवे आलोयां विनां । पछे तो गुर ने द्रव्य क्षेत्र काळ देख ने न्याय करणोहीज छै । पिण उण ने तो एक दोष थी दोय भेळा करणा नहीं। घणां दोष भेळा कर ने आवसी तो उ हाथां सूं झूठो पड़सी पछै तो केवळी जाणे छदमस्थ रा व्यवहार मांहे तो दोष भेळा करे तिण मांहे छै। लिखतूं ऋष भीखण रो छै सम्वत् १८४१ चेत विद १३
अथ इहां पण दोष रा धणी ने सताब सूं कहणो कह्यो । एक थी दोय दोष भेळा करणां नहीं, घणां दोष भेळा करे तिण ने झूठो कह्यो ।
तथा पचासा रा लिखत में पिण इमहीज कह्यो- एक दोष थी बीजो दोष भेळो करे तो अन्याइ छै। मांहो मांहि मिल ने जिलो बांधण रा त्याग छै । गुरवादिक ने भेळो तो आप रे मुतलब रहे। पछे आहारादिक रो कपड़ादिक घणा थोड़ा रो नाम लेइ अवर्णवाद
तेरहवीं हाजरी : २५१