Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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आचार्यादिक अर्थे वस्त्र पात्र आणे, गणी पिण साधु साध्वियां काज। ___ दर्शन करवा आवै त्यारे अर्थे, दोड मास सूं अधिक राखे सुख काज।।
(५९ दिख्या ले तिणरे रोगांन हींगलू बधै तो लेणो नहीं, इघिको लेवै छै) ७३ दीक्षा ले तिण रे काजे मोळ लेवै, वस्त्र पात्र रंग रोगान।
बीजा साधु अर्थे मोळ लेवे तो, ते नहीं बहिरे संत सुजान।। ७४ दीक्षा वाला अर्थे वस्त्र पात्रादिक, दीक्षा लियां पछे जे मोळ लीधा।
ते पिण कल्पे नही मुनिवर ने, पहिला मोळ लिया कल्पे छै सीधा।
(६० जिणमें जाणपणों थोडो तिण ने दिख्या दै) ७५ जाणपणों सिखाय ने दीक्षा देणी, संक्षेपरुचि सम्यक्त कही सार।
अठावीसमें उत्तराध्ययन' में आख्यो, तिण मांहे दोष म जाणो लिगार। ७६ स्वाम भिक्षु विस्ताररुचि नी, सम्यक्त सोल कळा जोड़ कीधी।
द्रव्य क्षेत्र काळ भाव निक्षेपा, जाण्यां विस्ताररुचि प्रसिद्धी ।। (५८ केलू री जायगां में चोमासो करै। ६५ थान आखौ राखै
६६ विना फारयां राखै) ७७ केलू री जायगां चोमासो कीधां, तिण में पिण दोष कोइ मत जाणो।
देश बाड फाड्यां आखो थान नांहि, ए पिण न्याय हिया में पिछाणो।।
(६७ चिलमिलि राखै) ७८ बे तीन साधां में एक चिरमली, च्यार पांचा में चिरमली दोय।
छ सात साधां में तीन चिरमली, इम अनुक्रमे राखणी अवलोय।। ७९ तीन च्यार पांच साध्वियां में, एक चिरमली ने उडघो एक ।
छ सात आठां में दोय राखणा इम अनुक्रमें जाणो सुविशेख ।। चिरमली रे बदले तंतु राखे, ते गणि विण पहिरणो ओढ़णो नाय।
गणी आणा कारण री बात न्यारी, तथा कल्प घट्यां दुलभ जांणी में ताय॥ ८१ चिरमली रा कल्प रो तंतु न पहिरणो, सूत्र में इम चाल्यो नाय ।
तिण स्यूं गणी गणपति नी आज्ञा स्यूं, भोगव्यां दोष न दीसे कांय ।। चिरमली रा कल्प में तंतु राख्यो, ते भोगवे गणी तथा गणी नी आण। एक चोलपटो तीन पछे वडी उपरंत, एक साथै नहीं भोगवै जाण ।। (६८ पाणी ठारे)
१. उत्तराज्झयणणि २८।२६
पंरपरा नी जोड़ : ढा०३ : ३४७