Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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८३ ठारणीयां सूं पाणी ठारे जयणां सूं, ए पिण भिक्षु नो जीत ववहार।
तिण मांहे दोष कोइ मत जाणो, रस्तानादिक रा कल्प में ठारणीयो सार।।
(६९ ऊंची जायगा रहै) ८४ पगथ्यां री नाल ऊंची जायगां रहिणो, निसरणी वाली अंतलिख न रहिणो। तिण जायगां तो रहिणो वौँ आचारंग में, बली अंतलिख जायगां रो आहार न
लेणो॥ (७० सेज्यातर भोगवै) ८५ जो साधु जेहनी जायगा रात्रि सूवे छै,तिण घर रो ते साधु ने नहीं लेणो आहार।
बीजी जायगा सूवे तो साधु वेहरी लेवे, तिण में दोष नहीं छै लिगार। दोय हाटां जोडे' दोय धणी री, आमा-सामा साधु सूवे नित्य जोय।
तो बेहुं घर टालण रो काम नहीं है, जायगां छोड्यां सेज्यातर नहीं छै कोय। ८७ नित प्रते सूवे ते सेज्यातर रो, अजाणे बहिस्यां भोगव्यां दंड आवै ।
जायगां छोडण रो काम नहीं छै, बहिस्यां पछै जाणे तो एकंत परठावै।। बारह प्रकार रो परठणो चाल्यो, सेज्यातरपिंड कह्यो तिण माह्यो। अजाणे बहिस्यां पछै खबर पड़े तो, आहार परठे पिण जायगां छोडे किण न्यायो॥ अजाणे आहार सेज्यातर रो बहिस्यो, जायगां छोडवा री धारी भोगवै आहार। तो पिण अजाण रो प्रायश्चित आवै, जायगां न छोडे तो परठणो सुविचार।।
(७८ आयाँ बेठां मात्रो करै) ९० पंचमी सुमति तणों जे कार्य, साधु करे आर्यां रे ठिकाणे।
आर्यां करे साधु रे स्थानक, तीजी सुमति ज्यूं पंचमी जाणे।। ९१ गवेषणा' ग्रहेषणा भोगेषणा, ए तीन भेद तीजी सुमति रा ताय।
साधु रे स्थान समणी आहार भोगवे, तिम हिज पंचमी सुमति जणाय॥
(८० माथो ढांक ने चालै) ९२ दिशा गोचरी ने विहार करंता, कारण बिन माथो ओढ़ी नहीं चाले।
व्यावच कीधां करायां निर्जरा, दशाश्रुतस्कंध संपदा सुगुण निहाले॥ (८७ कवाड़ी रो आहार लै)
१. जल को ठंडा करने के लिए पात्र पर लगाया जाने वाला वस्त्र २. जल पात्र को ढंकने का वस्त्र ७. प्रारम्भिक खोज। ३. पेड़ियां।
८. भोजन आदि ग्रहण करते समय जांच। ४. आयारचूला १८७,८८
९. भोजन आदि के उपभोग में उपयोग। ५. पास-पास।
१०. दसासुयक्खंधो ४।२३ ६. जिसके मकान में रात्रिवास हो, शय्यातर कहा जाता है। ३४८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था