Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 430
________________ चरण देश-व्रत कहिता आथ, औ तीनूं छै आपरै हाथ । बहुवारी, ते पिण घाल्यो वीसारी ॥ आयो, यां चारित्र केम अचर्य गमायो । नहीं दोहरी ॥ रुळजो । ए पिण जिण तिण नै सोहरी, थारै ए पिण दीसै ४५७ सतगुरु सीख सहु सांभळजो, यां जिम कोइ म संत सत्यांरा गुण उच्चरजो, अवर्णवाद म करजो॥ ४५८ ए तो बात न छै कोइ सारै, कर्म जमाइ जमाळी, कर्म करी नो शीस गोसाळो, थयो कर्म प्रतापो, कियो गोसाळा कुंण रंक, ४५५ सम्यक्त्व इह विधि गुरु नै ४५६ इण बात रो म्हांनै २ थी यांनै कर्मां लगाया संवळी वेवै ॥ सिराड़ै वीर प्रभु नो ४५९ वीर छद्मस्थ दिशाचरा' षट कर्म ४६० तो ए तो बापड़ा छै कर्म कटक झाली समसेर, यांनै चिहुं दिशि लीधा घेर ॥ ४६१ तिण कारण यांनै सवळी न सूझै, दिन-दिन अधिक अळूझै । कदाचित् कर्म विवर जो देवै, फिर पाछी ४६२ गुरु पै दीक्षा लई सल्य काढै, निज कांम हिवड़ां तो कर्म तणै वश डोलै, चढिया मोटे ४६३ विविध प्रकार ना अवगुण बोलै, विविध प्रकार ना दोष बतावै, यांनै ४६४ अवर दंड लेइ नै टोळा मझारी, औ जद दोष री बात न रही ४६५ दीक्षा दियां विण न लियां आगै टाळोकर हुआ अनेक, त्यां पिण ४६६ भिक्षु स्वाम त्यांनै रास मझार, मोह कर्म सरम नहीं आवै ॥ तो हुंता आवा नै त्यारी । सोय, यांनै ए पिण समझ न कोय | मांय, तिण सूं करै अवगुण बोल्या विशेष || ओळखाया सुविचार | बकवाय । ए रास नीं गाथा कहूं छू कोई, सांभळजो चित देइ ॥ भिक्षु कृत रास नी गाथा '१ ३ बलवंत मति वसै पछाडै । काळी ।। मतवाळो । लाज १. भगवई शतं १५ । २. पथ । ४०४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था मिलापो ॥ कळंक । चाढै । चखडोलै ॥ झकझोलै । अवगुण सुण-सुण ने धर्म सूं भृष्टी । यांरो बोल्यां री प्रतीत न समदृष्टि, यांनै जाणै आणै, झूठ में झूठ बोलता जाणै ॥ सरीखा नांहि, अकल जुदी-जुदी समदृष्टि साची हुवै दिष्ट, तो यांनै करै थोड़ा में खिष्ट ॥ घट मांहि । सगळा श्रावक तो यांनै न्याय सूं देवै जाब, पारै न आंणै संक, यांनै घणा लोका देखाळ दै मांहै आब । यांरो बंक || यांरी मूळ

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