Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२० इसड़ो कूड कपट चलायो, थारो छूटको किणविधि थायो।
जिण मारग में हुआ थे ठगो, थे तो दीयो घणा नै दगो।। २१ ठग-ठग खाधा लोकां रा माल, थारो होसी कवण हवाल।
आछी वस्तु हुँती घर मांहि, आहार पाणी कपड़ादिक ताहि ।। २२ थांनै गुरु जांणे हरष सूं देता, सो मैं थारा नींकळ गया पैंता।
म्हे थांनै वांदता वारंवार, जद म्हांनै हूंतो हरष अपार ।। २३ थांनै जांणता सुद्ध आचारी, थे छांनै रह्या अणाचारी।
म्हे तो थांनै जाणता पुरुष मोटा, पिण थे तो होय नीवड़िया खोटा॥ २४ म्हे थांनै जांणता उत्तम साध, थे तो होय नीवडीया असाघ ।
जांण रह्या दोषीळां मांह्यो, थे ठागा सूं काम चलायो ।। २५ थे तो जीतब जनम बिगाड्यो, नर नो भव निरथक हास्यो।
घणा दिनां रा कहो थे दोष, थारी बात दीसै छै फोक। २६ साच झूठ केवळी जाणै, छद्मस्थ प्रतीत न आणै।
थे हेत मांहै तो दोषण ढंक्या, हेत तूटै कहिता नहीं संक्या ।। २७ किम आवै थांरी परतीत, थांनै जांण लिया विपरीत।
दोषीलां सूं थे कीधो आहार, जद पिण नहीं डरिया लिगार। २८ तो हिवै आळ देता किम डरसी, थारी प्रतीत मूर्ख करसी।
औ थे दोष क्यांनै किया भेळा, औ थे क्यूं न कह्या तिण वेळा ।। २९ जो थांमै साध तणी रीत द्वैतो, जिण दिन रों जिण दिन कहीतो।
दोषीलां सूं कियो संभोग, थारा वरत्या माठा . जोग। ३० थारी परतीत न आवै म्हांनै, यांरा दोष राख्या थे छांनै।
थे तो कियो अकार्य मोटो, छांनै-छांनै चलायो . खोटो। ३१ भृष्ट हुइ थांरी मति सुद्ध बुद्ध, हिव प्राछित ले हुय सुद्ध।
उणां री तो थांरा कह्या सूं संक, पिण थे दोषीला निसंक ।। ३२ इम कहि उणनै घालणो कूडो, घणा बैठां देणी मुख धूडो।
ज्यूं कोई बले न दूजी वार, किणराई दोष न ढांकै लिगार।। ३३ दोष ढांक्या हुवे धणी खुवारी, टांको झलै तो अनंत संसारी।
संका सहित नै राखै मांय, तो और साधु दोषीला न थाय।। ३४ थाप रा दोषीला नै जाणी राखै मांय, तो सगळा असाधु थाय।
इम कह्या यांनै जाब न आवै, जब झूठी-झूठी बात बणावै।। ३५ यारा दोष न कह्या म्हे डरतै, गुरु सूं पिण लाजां मरते।
रखे करदै मोनै टोळा बारे, मुदै तो ओहिज डर रह्यो म्हारै।।
४०६ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था