Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 444
________________ ५७४ गणपति पूछी श्रद्धा अमूल, आप कहो ते सर्व कबूल। आज्ञा बारै त्यांने जाणूं महा पापी, स्थिर चित एहवी स्थापी।। ५७५ गणि कहै-अढी द्वीपना चोरो, तिण सूं टाळोकर अधिकेरो घोरो। जब ओ कहै आप श्रद्धो ते सोय, तेहिज श्रद्धा मोय ।। ५७६ जब छेदोपस्थापनीक चरण दीधो, सफल जमारो कीधो। सर्व संता रै आगै मान मोड़, वांदै बे कर जोड। ५७७ गुण गणपति ना गावै तज मांन, कहै आप तीर्थंकर समान। षट जणा निकळिया तिण वार, अधिक अविनीत रह्यो गण बार। ५७८ पंच जणा इम गण में आय, नवो चरण लियो चित ल्याय। गण बारै थकां तो अवगुण बोलता, हिव गण रा गुण गावंता॥ ५७९ अन्यमती स्वमती आगै अगाध, बहु बोलता अवर्णवाद। हिव सईकडां लोकां में शासण दिढावै, निज अपराध खमावै॥ ५८० कह-टाळोकर गधा समांन, त्या में चरण रो खेरो म जान। गधा रै मुंहपति बांधै कोय, तो चारित्र कदेय न होय॥ ५८१ तिम गण बार टाळोकर ताहि, त्यांमें पिण चारित्र नांहि। इह विधि टाळोकरां नै निषेध, कर्म पूर्व कृत भेदै।। ५८२ उगणीसै तेवीसै वर्स उदार, सुदि वैशाख अष्टम चार। भिक्षु भारीमाल ऋषिराय पसायो, जयजश जोड़ सुहायो।। ४१८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था

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