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दाल १ १६ 'कर्म उदय गण थी नीकळ नै, साधां रा अवगुण गावै रे । विविध प्रकारै दोष परुपै, मन मानै ज्यूं गोळा चलावै रे॥
निंदक टाळोकर रो संग न कीजै।। १७ स्वाम भीखणजी री मर्यादा भांगी, अवगुण बोलण लागो ।
बलि साधुपणा रो नाम धरावै, करै विविध प्रकारै ठागो ।। १८ कह्यो लिखत पैंताळीस अवर भणी जे, साथै ले जावण रो त्यागो।
ते पिण भिक्षु री मर्यादा भांगी, कुळ नै लगायो दागो॥ १९ हुंता अणहुंता अवगुण अंश पिण, बोलण रा पचखांणो।
ए लिखत गुणसठै भिक्षु मर्यादा, ते पिण भांगी मूढ अयाणो।। २० इण सरधा रा क्षेत्रां विषै रहिवा रा, त्याग कह्या भिक्षु स्वामी।
ए पिण वचन उथाप्यो अज्ञानी, क्षेत्रां में रहिवा लागो हरांमी।। २१ गण माहै पत्र लिखै फुन जाचै, ते पिण साथै ले जावणा नाहि ।
ए पिण भिक्षु नी मर्यादा भांगी, कुमति हिया में वसाइ।। २२ अनंत सिद्धां री साख करी नै, नित्य प्रति हाजरी मांह्यो।
अवगुण बोलण रा त्याग करतौ थो, ते पिंण दिया उड़ायो।। २३ बलि मुख सूं हुं तो भीखणजी नै, सरधु ववहार में साधो।
त्यां रा वचन उथापै अज्ञानी, तिण रै किण विधि होसी समाधो।। दोष अनेक बतावै टोळा में, तिण नै पूछा करै कोई।
थे दोषीला भेळा घणा वर्ष रहि नै, आत्मा काय बिगोई।। २५ थे घणा वर्षा लग दोषण सेवी, साधुपणा रो नाम धरायो।
एहवो कपट करी नै लोकां नै डबोया, थारो छूटकौ किण विधि थायो। २६ बलि टाळोकरै किण ही पूछा कीधी, थे गण थी नीकळ ताह्यो।
फैर दीक्षा लीधी कै नहि लीधी, जब औ कै दीक्षा लीधी नाह्यो। २७ म्है इतरा वर्ष रह्या दोषीला भेळा, तिण रो चिहुं मास नो दंड लीधो।
फैर दीक्षा म्हानै नही आवै, इह विधि उत्तर दीधो। २८ रिसिराय थकां इक गण थी नीकळीयो, ते नंदी उतस्यां कहितो पापो।
साधु मात्रो परठ्यां पिण पाप सरधतो, कीड़ी पूंज्या पिण पाप री थापो।। २९ तिण रा श्रावक साधां रा धेष रा घाल्या, जावा लागा है इण रै पासो।
पिण औ तो नंदी उतरीयां धर्म सरधै, त्यांनै इतरो विवेक न तासो।।
१. लय-चतुर विचार करी नै देखो......
४२२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था