________________
४६
असाध
सरधता, ए इता वर्ष रह्या म्हां मांही । मांहै, पिण साधुपणो थो नाही ॥
तो यां
५१
उ वे तो म्हांनै उणां रै लेखै ४७ थारे लेखे तो साधुपणो न हुंतो, नींकळीया पछै दीक्षा न लीधी । हिवै साधुपणो या में किण विधि आयो, आ देख लेवो बात सीधी ॥ ४८ थे संसार में करो लाखां रा लेखा, थाने इतरी समझ पड़ै नाह्या । जब इण कौ दीक्षा नवी तो नही लीधी, नवी लेणी तो चाहीजै ताह्यो। ४९ पछै ते सिरदारगढ़ में जइ नैं तिण नै, नवी दीक्षा, दिवरावी । दीक्ष न लेवै तो श्रावक न मांनै, तिण रै मोटी विपति पड़ी आवी ॥ महाजन विण पहिला दीक्षा दीधी थी, तिण नै पिण पाछी दीक्षा दीधी। श्रावक श्राविका रे अर्थे अज्ञानी, एहवी कपटाइ कीधी ॥ जद सिरदारगढ़ में आर्यावां हुंती, त्यां नै तिण श्रावक कही आयो । यां नै तो म्है सुद्ध कर दीधी छै, इम नवो साधुपणो दिवराव्यो । ५२ साधुपणों ते नवो अबै लीधो, गण थी नीकळ इता असाधु थका साधु नाम धरायो, एहवो मोटो ठागो गण मांहे तौ बहु दोष बतावता, मुख सूं कहता है साधो । लोकां नै समाई में वंदना कराई, डबोया बहु जन नै वाधो ॥ ५४ पोता नै बहिराया में धर्म परुपता, जब तौ देता अन्न पाणी । पेट रै काजै बहु लोक डबोया, आ दुर्गति नी नीसाणी ॥ ५५ साधुपणो तौ अबै लीधो छै, इतरा वर्ष तौ ठागो चलायो । यां ठग - ठग लोकां रा माल खाधा, यां रौ छूटकौ किण विधि थायो । नही संक्या, साधु वाजतां ते मूसावायो । बतावै, यां री प्रतीत किण विधि आयो ॥
वर्ष ताह्यो । चलायो ॥
इतरा वर्ष ठागो करता लै गण रा साधा में दोष ५७ इतरा वर्ष ठागा सूं
काम
५९
चलावतां, डरिया नही मन मांह्यो । बतावता, ए किण विध डरसी ताह्यो । मन में, दोष न जाणतां होसी ताह्यो । एक ओ पिण ठागो चलावता होसी, यां री प्रतीत किण विधि आयो ॥ जद कहै म्हाने तो खबर पड़ी नही, तिण सूं पहिला लियो छैदो । खबर पड़या पछै नवौ साधुपणो, लीधो है आण उमेदो ॥ ६० जो खबर पड़ी नही तो गण थी नीकळ, किम बहु दोष बताया । ते पिण जाझा तीन वर्ष लग, दोष कही बलि लोकां नै कहता सूत्र तौ, बरज्यो ए दोष सेवै छै विशेषो । पड़ी नही, ए प्रत्यक्ष झूठाबोला देखो ||
बहु जन भरमाया ॥
बलि कहै म्हानै तो खबर
४२४ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था
५०
५३
५६
तो गण मा दोष अहुंता ५८ ते साधां में दोष कहे ते
६१