Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 439
________________ ४९९ ऋषि बींजराज पिण निषेद्यो विशेष, तो पिण न धर यो धेष। श्रद्धा रा क्षेत्रां मांहि नहीं रहिणो, वचन उत्तरतो नहीं कहिणो॥ ५०० ए दोय सीख बींजराजजी दीधी, बीजै अवनीत मांने लीधी। हीरालाल नै कही बहु वाय, ते पिण सरल जणाय ।। ५०१ ऋषि हीरालाल नै कहै सुविशेष, थारी म्हारी दृष्टि एक। त्यारै आहार पाणी भेळो कहै ताहि, पिण इतरो फेर मांहो मांहि ।। ५०२ ते पिण तिण री न करै पिछांण, घणी फूट फजीती जांण। साधु तो यांनै असाधज श्रद्धे, ते प्रत्यक्ष पिण नहीं पड़दै॥ ५०३ दीक्षा विण लेवा तणां पचखांण, ते पिण चोहै जांण। तो पिण ए कर जोड खमावै, बलि स्वामीजी कही बोलावै॥ ५०४ बलि शासन सूं अनूकूल केई, बात कहै स्वमेई। कोई कहै प्रतिकूल अधिक विशेष, इम आपस में नहीं एक॥ ५०५ श्रावक समझू आरै किया नाय, जब गया अधिक मुरझाय। __ कहै चारित्र पिण म्हे लेवां अमूल, करां नवी दीक्षा पिण कबूल।। ५०६ पिण कायक तो म्हारी राखीजै, पांच च्यार बोल तो छोडीजै। एहवा गृहस्थ कागद में लिख्या समाचार, जब जयगणि बोल्या तिवार।। ५०७ यांनै लेवा अर्थे यांरा कहिण सूं जाण, इक पिण बोल छोडण रा पचखांण। नवी दीक्षा ले आवै गण मांहि, पोता में संजम सरध्यो नाहि।। ५०८ पोता में चारित्र सरधै जो एह, तो नवी दीक्षा किम लेह । मान बडाई नै काजै अयांण, करै बोल छोडावण री तांण॥ ५०९ दूजी वार सुण्यो बोल छोडो जो एक, तो म्हे नवी दीक्षा ल्यां विशेष। नवी दीक्षा पिण करै अंगीकार, पिण यांरो मिटियो नहीं अहंकार॥ ५१० मान अहंकार पिण थोथो अथाय, ते तो विवेक विकळ कहिवाय । किण ही चोर नै महिपति प्रसिद्धो, सूळी तणों हुकम दीधो।। ५११ चोर कहै सूळी पिण अंगीकार, पिण नवी पाग बंधावो अबार। सूली चढवो अंगीकार करै छै, बले थोथो अहंकार धरै छै।। ५१२ तिण सरिखा औ पिण मूरख धार, नवी दीक्षा करै अंगीकार । जाणै बोल छोडायां म्हारो रहै मांन, इण लेखै विकळ समान॥ ५१३ नवी दीक्षा लेणी धारी पिछांण, जब गळ गयो जाबक मांन। बले करै बोल छोडावण री बात, तिण लेखै मूरख साक्षात॥ ५१४ अधिक अविनीत दोय वार टळीयो, नीकळ-नीकळ बोल्यो अळीयो। बीजो अविनीत टळयो चिहुं वेला, नीकळ-नीकळ कीधा हेला। लघु रास : ४१३

Loading...

Page Navigation
1 ... 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498