Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 436
________________ ७६ जे कोइ गण में हुवै अवनीत, तिण सूं गाढी बांधै प्रीत । ते पिण अवगुण बोलावण रै काम, इसडा छै मैळा परिणाम ।। ७७ जिण रै द्वेष छै घणा दिन पेलो, दुष्ट परिणामी जीव छै मेळो। तिण रै उदै हुवै कर्म मिथ्यात, ते तुरत मांनै त्यांरी बात ।। ते अवनीतां री करे पखपात, तिण रै आय चूको मिथ्यात । खप' करै त्यांरी करीवा थाप, तिण रै असुभ उदै हुआ पाप ।। ७९ जाणै अभिमानी अनै अवनीत, तोही राखै त्यांरी परतीत। प्रत्यक्ष तिण रै पूरो अंधारो, बूडै छै अवनीतां रै लारो।। अवगुण जिण नै गुरां रा सुहावै, ते अवनीतां नै मूंहढे लगावै । अवगुण गुरु रा त्यां पास बोलावै, पछै लोकां में आप फैलावै॥ जिण तिण आगै करे जे बात, करै अवनीतां री पखपात। अवनीतां नै साचा सरधावै, गुरु में अवगुण दरसावै।। वंदणा करै गुरु नैं शीस नाम, करै अवरां रा गुण ग्रांम। ते होय बैठा अवनीतां री लारी, औरां नै खपै करि खुवारी।। ८३ गुरु सूं लोकां रा परिणाम फारै, आप बिगड्यो ओरां नै बिगाडै। श्रावक एहवो विश्वासघाती, ते पिण होय चूको मिथ्याती।। गुरु री साची बात दै ठेली, अवनीतां रो होय जाय बेली॥ हर कोइ अवनीत छूट, तिण रो बेली होय ऊठे।। सांधां रा अवगुण बोले, तिण सूं बात करै दिल खोले। अवनीतां नै मिलैं अविनीत, त्यांरी तेहिज करै प्रतीत ।। गुरु सू पिण जाबक नहीं तोड़े, अवनीतां सूं सठ नहीं जोड़ें। धरपाधर रह्या छै देख, छल छिद्र जोवै . छै शेष॥ ८७ जो अविनीतां नै लोक न मांनै, तो आप पिण होय जाय कांनै। अणसरतै दबीया रहै मांहि, पिण लक्षण जाणे लीया ताहि ।। ८८ केइक श्रावक दोपड़पीटा, ते पिण पड़ीयां यारै संग फीटा । . जो कोइ बंध निकाचित पारे, ते पिण अनंत संसार बधारै।। ८९ श्रावक केइ भागल साख्यात, करै भागलां री पखपात। जाणै चोर सूं मिल गइ कुत्ती, झूठी बातां करै अणहुंती॥ ९० ते भागला नै कहै उत्कृष्टो, तिण री पिण मति होय गई भृष्टो। तिण भागल नै भागल मिलियां, किम पूरीजै मन रंग रलियां। १. विशेष प्रयत्न। ४१० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था

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