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ऋषि हंसराज कृत
१ टाळोकर च्यारूं हुआ गण बारो, अधिक अवनीत बोल्यो तिवारो। - इण रा जावण रा परिणाम, जब कुकली बोल्यो तिण ठांम।। ___ गुरु सूं बोल्यो जोडी हाथ, म्हारी अरज सुणो स्वामीनाथ।
__ म्हारा पांना हुंता ते सार, ले गया गण सूं बार।। ३ आपरी आणा हूं चाहूं, म्हारा पांना लेइ नै आवू ।
कोइ समझ जाय सारो, तिण नै पिण ले आउं लारो॥
ओ तो घणो मीठो बोलै सोई, म्हारै साधु साथै मेळो कोइ।
किण रो भळो होय जावै, तो लाभ आप नै थावै॥ ५ ओ तो केलवै कपट नै कूर, गण सूं दैवा दूर।
___ गुरु नै खबर नहीं छै ताम, इण रा दुष्ट घणां परिणाम ।। ६ जब गुरु बोल्या तिण वार, म्हारै चावना नहीं लिगार।
तूं अर्ज करै बारंवार, ऋषि हंस मेळां थारी लार।। ७ मन में तो कपट छै भारी, इसा परिणामां सूं हुवै खुवारी।
ऋषि हंस नै खबर न काय, ओ तो इसड़ो करै छै अन्याय ।। मजल करि नै गया त्यां चलाय, ऋषिहंस तो आगै जाय। भागल बैठा छै सोय देखी नै उदासी होय।। म्हे थांरो ल्याया नाय, म्हारे लारै आया छो कांय ।
दूजो कुण छै थांरी लार, नाम सुणनै हरष्या तिवार ।। १० इतरै अधिक अविनीत आय, सगळा भागल ऊभा थाय।
मन में तो सगळा हरषाय, दूजा री सरम सूं बोलणी आवै नाय॥ ११ ऋषि हंस कहै सुविशालो, थे काय लगावो आतमा नै काळो।
थे गुर आज्ञा सूं हुवा बारो, खोय दियो संजम भारो॥ १२ जब मै कहै म्हारै संका पड़ी सोय, इतरा बोल कह्या ते जोय।
अगळ डगळ बोल्या तिण वार, त्यां में सुद्ध नहीं है लिगार।। १३ जब म्हे कयो क्यांनै करो सोरो, थे तो हुआ गुरां रो चोरो।
थे तो बुढापै जमारो खोयो, धोलां में धूल नखोयो। १४ हाजरी में ऊभा राखै महाराज, म्हांनै आवै घणेरी लाज।
म्हे कह्यो सुविनीत ऊभा रहै आय, थांनै लाज क्यूं आय।।
३. हो हल्ला ।
१. लय : विनय रा भाव सुण-सुण गूंजै २. धूर्त।
३८२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था