Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 416
________________ २४२ गण में बे मास रही नै ताम, बले करै उदंगळ आम । जैगाम जइ इक साधु फटाय, चौमासा में ले आयो ताय ॥ मझारो । बाजार २४३ इण विध चौड़े पाड्यो तिण धाड़ो, ते पिण पण धाड़ो चौमासा मांह्यो, बीजा गाम थकी ले आयो ॥ २४४ साधां जाण्यो ऐ दगादार पूरा, जद कर दिया गण थी दूरा । बहुविध कपट कियो गण मांहि, घणां लोकां जाणै लिया ताहि ॥ २४५ बीजो, तीजो चौथो तीनूं भेळा था दूठो', आहार पाणी तीजा सूं तूटो । धुर पंचम छठो यां तीनां सूं ताय, तीजो अविनीत मिलियो आय ॥ २४६ छठो गुणठांणो फिरियो सरधीयो, तिणसूं आहार पाणी किम कीयो । ए पिण विकळां रै नहीं छै विचार, कियो आंख मींचने अंधार ॥ २४७ छठो गुणठाणों तो फिर गयो पहिला, दीक्षा विण कियो संभोग वहिला । रखे अधिक दिवस थयां छठो फिर जाय, तिण भय सूं पोतै आया मांय || २४८ दोनूं तीजा अविनीत सूं संभोग कीधो, पिण नवो चारित्र नहीं दीधो । दीक्षा दियां विण कियो संभोग, तिण सूं लागो जोग नै रोग || २४९ तो ए छठो फिरियो तिण सूं संभोग करता, मन मांहै मूळ न डरता । गण में आया पछै दोनूं नै आम, कोइ पूछां करै तिण ठांम ॥ २५० थया तीनां नै साढा छ मास उपरंत, यांमै चरण पावै कै न हुंत । जद तो कहै छठो नहीं पाय, तो टळियां पछै किम थाय || २५१ गण में थकां रो श्रध्यो छठो फिरियो, तठा पछै नवो न उच्चरियो । त्यांनै गृहस्थ सरीखा जाण्या भेषधार, तिण सूं दीक्षा विण किम कियो आहार ॥ २५२, गण में थकां री श्रद्धा जाणै साची, जद तो भेळा थया मत काची । कै असाधु श्रध्या ते श्रद्धा जाणो, झूठी, तो थांनै दीक्षा आवै अपूठी || २५३ रह्या साढा छमास थकी अधिक बार, तिण में चरण सरधो इह वार । तो बे मास तांइ न सरध्यो चरित्त, इण लेखै थारै आयो मिच्छत्त ॥ २५४ थारै लेखै साधु न सरध्यो असाध, थांरै लेखै सम्यक्त्व विराध । कुदेव नै देव सरधै बे मास, नवो चरण आवै तास ॥ २५५ सरधै अजीव नै जीव बे मास, नवो चरण आवै सरधै अधर्म नै धर्म बे मास, नवो चरण आ तास । तास ॥ १. कस्तूरी को हरषचंद जी स्वामी के पास लाया गया। २. दुष्ट ३. कपूरजी से । ३९० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था

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