Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 423
________________ ३४६ दंड लेई मांहि दंड लेई मांहि ३४७ दंड लेई मांहि आवा दंड लेई मांहि आवा कहै ३४८ दंड लेई मांहि आवण पूरा, बले. दोष कहै कूडा । बतावै झूठा ॥ दोष कहै छै अनाणी । गण में आवी लेवै ॥ बहु विधि ताम | पिण नहीं छांनै ॥ तणो लेवै नाम । कहै छै बात ॥ ओ पिण झूठ ३५२ दोष जाणै तो बात दंड ई महि आवत तूठा, बले दोष जाणी, बलि जो देवै, जब तो परिणाम, तिण सूं बोलै कीया' सहु जांनै, ते प्रगट पड़णो काठो कांम, तिण सूं दोष बोलै साख्यात, घणां वर्सा री वंदना में नाम, क्यूं घाल्यो घणां दिन तांम । वंदना तणो म्हे कीधो संभोग, संवच्छरी सुभ जोग ॥ ३५३ पछै दोष री र क्यूंही, झूठा दोष बतावै यूंही। किण ही पूछ्यो थे दोष कहो गण मांहि, थे पिण सेव्यो घणा वर्स तांई॥ ३५४ घणा वर्स रह्या असाधां मांय, तिण सूं नवी दीक्षा त्यां नै आय । जद कहै नवी दीक्षा नावै म्हांनै, दोष जाण्या पछै यांनै ॥ ३५५ दोष न जाण्या म्हांरो न यांरो, न गयो साधुपणो सगळां इता वर्स तांइ, दोष न जाण्या साधुपणो थापो, यांरो थे कांय हिवड़ा जाणै नांय, तो यांरो संजम किम जाय ॥ चरण इम थांरो, तो इमहिज चरण इणां रो । संजम गयो नांहि, निर्दोष जाण सेव्या ताहि ॥ तेहिज छै तेम, यांरो चारित्र जावै केम | हिवडां तेहीज, तो चारित्र किम न कही ॥ रो । त्यांनै कहिणो थो कांइ ॥ थे उथापो । ३५७ घणा वस रो इतरा वर्षां रो ३५८ हिवडां पिण बोल बोल आ ३५९ न्याय दृष्टि करि मन में विचारो, म करो आंख मीच नै अंधारो । घणा व रो चरण पोता में सरधै, कहै प्रगट पिण नहीं पडदै ॥ ३६० इतरा वर्सा रो चरण गण में पिण थापै, तो हिवडां कांय उथापै । इतरा वस रो चारित्र यांरो न थांरो, दोष सेव्यां तो न गयो किणां रो ॥ ३४९ दंड लेई मांहि आवै दीक्षा विण और दंड ३५० दीक्षा लेवा रा नहीं 'दीक्षा विण त्याग ३५१ 'लहुडा' रै' पगै ३५६ तिण सूं थारो ए पिण दोष आवण साजै, आवण री १. छोटों के । बलि दोष बैठा, बलि दोष हाम, हिवै दोष नै त्यारी, बलि दोष कहिता नहीं लाजै । बतावै धेटा ॥ किण काम | छै गिंवारी ॥ छै कहै लघु रास : ३९७

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