Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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१३ मन माहै हुंती मोटकी आस, ते तौ जाबक हुआ निरास।
मन रौ मनोरथ इण रौ न फळियौ, जब अधिक द्वेष परजळियो। १४ गणपति ऊपर पूरो द्वेष, इणरै कर्म तणी काळी रेख।
छांनै-छांनै गण गणपति केरा, ओ तौ अवगुण बोलै घणेरा॥ १५ छांनै-छांनै गृहस्थ आगै विसेख, गुरु रा अवगुणबोलै अनेक।
हाजरी में नित्य त्याग करंतो, छांनै-छांनै अवगुण बोलंतो।। १६ गृहस्थ कहै-थांनै बोलणो नांही, जद कहै म्हे तो ओळखाई।
ग्राम परग्राम रा भाई आवै, त्यांरै आगै पिण अवगुण गावै ।। १७ साधां आगै पिणकहै छान-छांनै, जिण रै असुभ उदे ते मांनैं।
खबर पड़ी गणपति नै तिवार, जब निखेद्यो परषद मझार।। १८ अविनीत पणांरो अवगुण देखी, गुरु चोडै निखेधै विसेखी।
यां तो सर्व साधां रै मांही, म्हारी आब न राखी कांई। १९ बले आसता इण विधि चोडै उतारै, तो हूं क्यानैं रहूं यारै सारै।
यांनैं छोडी नैं हूं हुय जाउं न्यारो, यारै पिण करूं बहुत बिगाडो। २० दोष परूषू यांमें भारी, जब खबर पडै यांनै म्हारी।
बलि परिचादिक री मरजादा कीधी, ते अविनीत खांच गलै लीधी॥ २१ गुरु सांकडी विविध मरजादज करता, किण ही सूं मूळ न डरता।
बले अगवाण नहीं विचरावै, संकडाइ में रहणी किम आवै।। २२ एहवो विचार अधिक अवनीत, महा कपटी खोटी नीत ।
एकला री आसंग नहीं आवै, जद बीजानैं बेली उठावै ।। २३ ओ तो आगै गण थी टळियो न हुँतो, पिण इण रासा में ओ धुर जूतो। और फटावण में ओ अगवाण, तिण सूं अधिक अवनीत पिछांण।
इति अधिक अवनीत वर्णन २४ गण मांहै केइ आगै निकळिया, दण्ड लेइ पाछा वळिया।
पिण अवर्णवाद स्वभाव छै ज्यांरो, अविनय रोग मिट्यो नहीं त्यांरो। २५ ते पिण प्रतिकूल गणपति केरा, मन वेदै कष्ट घणेरा।
परचादिक रो रोग ज्यारै भारी, बले लोळपी क्रोधी अहंकारी।। २६ एहवा अवनीतां सूं मिलियौ जाय, त्यां सूं बांधी प्रीत सवाय।
यारै पिण गुरु सूं अंतरंग धेख, अधिक अविनीत मिलियां विसेख॥ २७ चोर सूं जांणै मिल गइ कुत्ती, झूठी बातां करै अणहुंती।
तिण अधिक अवनीत भणी अगवाण, कीधो त्यां अविनीतां जांण।।
१. कठिन।
३७२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था