Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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२८ वस्त्र तन रे लगावा, मेण, गुगळ कर आण।
ओघादि धोवण, गूंद आणे निज पाण। २९ गृहस्थ री आज्ञा स्यूं, ऍबड़ादिक तन काज।
आटो ले कर थी, बलि मलम चरण सुख काज।। ३० पात्रा रे लगावा, तेल अनें रोगान।
कर स्यूं नहीं लेणो, जीत ववहारे जाण॥ ३१ लखारादिक अन्यमति, तेह तणी ए रीत।
जो हरख धरि कहै, ल्यो थे कर सूं नचीत।। ३२ दृढ़ श्रावक बले रागी, तेहनां कर सूं ल्यावै।
चावै सो लेइ,ते दिन पाछो ठावे ।। ३३ पाडियारो कही ल्यायो, पिण ते दाय' न आयो।
निशि राख्यां विण सूंपै, तो पिण दोषण नायो।। ३४ कपड़ो निज कर स्यूं, पाडियारो मुनि ल्यावे।
पछे गृही ना कर स्यूं, बेहरी ने वरतावै।। ३५ गृही ने कर जाची, पाडियारो जो ल्यावे।
पछे धारी फाड़ दे, तो पिण दोष न थावे॥ ३६ गृही कर थी तंतु, आधो कदाचित ल्यावे ।
पछे धारी न देणी, न कल्प्यां परठावे।। ३७ स्याही में हींगळू, गोळी संपेतो जंगाल। __इत्यादिक रंग बहु, कर स्यूं ले मुनि माल ।। ३८ पात्रा रे लगावा, साजी गोबर छार।
बलि और कारण ए, कर स्यूं ले सुविचार।। ३९ डोरा सूत में डांडी, पाटी पूठा पेख।
कर स्यूं ए लेणा, जीत ववहार सुलेख॥ ४० राब छाछ में रोटी, अपर बलि अन्य जात।
कर स्यूं नहि लेणा, ए परंपर बात ।। ४१ मकिया रा कण पिण, कर स्यूं खेर न लेणा।
रस ने बलि होळा', इत्यादिक इम कहणा।। ४२ ए वस्तु कही छै, तेह तणे अनुसार।
केइ कर स्यूं लेणी, केइ न लेणी लिगार।
१. पसंद २. एक प्रकार का रंगविशेष।
३. राख। ४. कच्चे भुने हुए चने।
पंरपरा नी जोड़ : ढा०७: ३६७