Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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९३ सुध ववहार किवाड्या के रो, खोलाय ने बहिरयां दोषण नांहि ।
पवन ओषधि अर्थे खोले जयणां सूं,पोळ री बारी पिण खोले दिन निशि मांहि।।
(९२ मेह बरस रयां तुरत उठे) ९४ मेह बरसे छेहडे धीमो पड़े छै, कांयक बूंद पड़े पछै थंभे।
तिण सूं मेह वर्ष रह्यां तुरत उठै छै, सुध ववहार जाणी अवलंबे।।
(९३ फुहारा (परठ)) ९५ फुहारा' एकंत जयणां तूं परतै, प्रथम उद्देशे आचारंग मांय ।
प्रत्यक्ष दृष्टि आवे पाणी में, त्रस निजरां देखी न लीये मुनिराय ।। (९४ गुठली आंबा री आंबली री परछै) गुठली आंबा री में आंवली केरी, बहु आहार सहित बहिरयां दोष नाहि। घणो न्हाखणो पडे थोड़ो खाणो पड़े तो, ते आहार वौँ आचारंग मांहि।
(९६आमना जणावै सामाचार री) ९७ सावध आमना नाहि जणावै, पूछ्यां रो जाब सुध निरवद देवे।
अमकडिया पासे थे दीक्षा लेवो, 'आसोच्चा केवली' पिण इम कहेवे ।।
(१०० घणां साध साधवी भेळा रहै) ९८ घणां साधु साध्वी रहे भेळा तिण में, दोष कहै ते मूर्ख बालो।
पूछी निसंक जाणी सुध लेणो, दशवैकालिक पंचमें अध्ययन संभाळो।। ९९ घणां संत भेळा रह्यां दोष बतावे, ते कर रहया मूर्ख कूड़ी रूढ़ो।
अणहुंतो दोष परुपै अज्ञानी, बूडो रे बूडो निकेवल बूडो॥ १०० घणां साधु साध्वी रहे गुरु पासे, ते तो अधिक वैरागी अमूळो।
तिण मांहे दोष कहै कोई मूर्ख, ते भूळो रे भूळो निकेवल भूळो ।। १०१ घणां साधु-साध्वी रहै गुरु पासे, त्यां अधिक जीभ्या बस कीधी अपूठी।
उत्कृष्ट गुण ने अवगुण थापे, त्यांरी फूटी रे फूटी अभ्यंतर फूटी॥ १०२ दोय कोस तांइ करे गोचरी, शीत उष्ण कष्ट सहे अपूठो।
तिण निर्जरा धर्म में अधर्म थापे, ते झूठो रे झूठो निकेवल झूठो।। १०३ आधाकर्मी आदि रो नाम लेइ ने, दोष कहे मूढ़ बिना विचारो।
पूछी निसंकपणे लियां मुनि ने, दोष न लागे मूळ लिगारो।
१. पानी में पैदा होने वाले सूक्ष्म द्वीन्द्रिय जीव। २. आयारचूला १।१।३ ३. आयारचूला १५१३३,१३४।
४. किसी से धर्म श्रवण किए विना ही सहज
रूप से केवल ज्ञान प्राप्त करनेवाले। ५. दसवेआलियं ५.१११६
पंरपरा नी जोड़ : ढा०३: ३४९