Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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बली मेड़ी ओरो भाडै, ते पिण खेतर जुदो जाणवो गणि आणा सारै।।
हिवे चूलां' ना उच्चारणा।। हवेली एक मांहि जांणो, दोय चूला पिण सगळां रो जीमण भेळो माणी। बिहूं चूलां रो इक खेतं, हिवे चूला तो जुदो क्षेत्र सांभळज्यो समचेतं ।। हवेली एक बंधव च्यारो, इक कोठी नो धान खावे चिहुं चुला तसु न्यारो। प्रथम दिन ले इक बंधव नो, बीजे दिन बीजे चूले ले तास तथा पर नो।।
असूजता में इमहीज वरणा। गृहस्थ घर दोय तणां ज्यांही, करत रसोइ इक चूले जळ लूण भेळो त्यांही। एक दिन इक घर मुनि फरसे, दूजे दिवस लिये बीजा नो दोषण ना दरसे॥ एक घर असूजतो होयो, तिण कर तिण चूले बीजा नी वस्तु ले जोयो। एक नी जायगां उत्तरीयां, सेज्यातर में बेहुं टाळणा लवण पाणी भिलिया।
निमळ ववहार हिये धरणा। सेठ ने दोय त्रिया जाणी रे, एक हवेली जुदी-जुदी रहे जुदो क्षेत्र माणी। सेठ जीमे बारे-बारे, इक दिन ल्होड़ी रे बीजे दिवस बड़ी तारे॥ एक रे असूजतो हुवो रे, तो बीजी रे वहिरे मुनिवर क्षेत्र जाण जूवो। सेठ सेज्यातर जो होयो रे, तो दोनूं रो आहार न लेणो धणी एक जोयो।
बहु विध हैएहना निरणा। भरत श्रेणिक प्रमुख रायो रे, बहु अंतेउर जुदा-जुदा रहिवास तास थायो। मुनि बहिरंता अन पाणी रे, असूजता में नितपिंड नी इक रीत क्षेत्र माणी।। बारह व्रत धारक बह राणी रे, व्रत बारमो निपजावा मन अधिक हर्ष जाणी। इत्यादिक न्याय बहु पेखी रे, क्षेत्र जुदा नो जीत परम्परा जाणो सुविशेखी।
ढाळ पंचमी अदल निरणा।
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१. चूल्हा ।
३५८ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था