Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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ढाळ ५
दोहा ना बलि, आखू छठा तणों, पंचमी
१
बोल , जीत
गोचरी ववहार
छू अधिकार। ढाळ उदार ॥
२
'अखिल आचार हिये धरणा रे, सुध आचार हिये धरणा। जीत ववहार तणी जिन आणा, तास अंगीकरणा ॥ध्रुपदं॥ नाज संघटे गृहस्थ बेठो रे, वंदन अर्थे ऊठ मुनि पद प्रणमत चित सेठो। हिवे बहिरावण मन हींसे रे, तास हाथ स्यूं लीधा मुनि ने दोष नहीं दीसे। प्रथम बहिरावण रे काजे रे, सचित्तसंघटा थी तो नहीं उठ्यो पूछयां भ्रम भाजे। निसंक करने मुनि वर बहिरे रे, सुध ववहार प्रवर्ते तिण ने उत्तम कुण चेहरे।।
बली गणपति कहे ज्यूं करणारें ॥जीत०॥ पृथ्वी पाणी रा संघट थी, वंदन ने उठ्यो तो पिण नहीं लेणो तसु कर थी। सूक्ष्म रज जाणी ने टाले, अपर बोल आणा गणपति नी तन मन सुध पाळे॥ बलि मुनि आवंता देखी, रोटी फेर तथा लकड़ी चूळा में दे पेखी। तथाबलि अपर सचित जाणी, निज पोता रे निमत्त अलग मेल्या ते पहिछाणी॥
तास कर सूं पिण परहरणा॥
४
मुनि गोचरी गयां पहली, असूझती जे वस्तु हुवै ते संत निमित्त वहली। सूजती करे को अयाणा, किण हि खेत्र में ते वस्तु तिण दिन नहि ले स्याणा।। तेहिज क्षेत्रे पिण तसु कर स्यूं, अन्य चीज पिण नहि लेणी ते असूजती धुर स्यूं। अन्य क्षेत्रे तेहनें हाथे, वस्तु अनेरी लीधां दोष दीसे विधि बाते॥
असूझतो घर नहि उच्चरणा॥ किण हि क्षेत्रे मुनि बहिरंता, असूझती जे वस्तु हुई ते नहि ले गुणवंता। अन्य क्षेत्रे पिण ते ढालें, अन्य चीज अन्य क्षेत्रे तास कर लिये आण पाळ। जास घर असूझतो थायो, तिण क्षेत्रे हर कोई वस्तु नहि ले मुनिरायो। अन्य क्षेत्रे वस्तु बीजी, तेहज घणी नी चीज लिया दोषण मुनि ने नहीं जी॥
जूवा क्षेत्रां नां कर निरणा॥ हवेली मांहे इक जाणी, मोड़ा बाहिर चोको प्रमुख जुदो ते पहिछाणी। हाट घर जुदो प्रत्यक्ष दीसे, नोहरा नो निकाल जुदो ते पिण न्यारो कहीसे। धणी बे इक घर बेहचाणो, ते पिण खेतर जुदो-जुदो छै न्याय हिये आणो।
६
१. लय-अमरापुर को पंथ सदा श्री जैन धर्म..."|
पंरपरा नी जोड़ : ढा० ५: ३५७