Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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तिण रे हाथ सूं आहार न लेणा, कछोटी हाल्या होय अजेणा।
कछोटी रे संघटे तन जाण, कछोटी हालवा रो ठिकाण।। (१५) तथा कछोटी रे पलो लागे, सचित्त कछोटी री संघटे छै सागे।
देतां अजयणा' न जाणे लिगार, लेवे देखी शुद्ध ववहार ।। लूण पाणी रा ठाम छै सागे, संघटे बेठो तथा पलो लागे।
तिण रा हाथ स्यूं न लेणो आहार, लूण पाणी सूक्ष्म विचार॥ (१७) साधु गोचरी गयो तिवारे, दातार ने कीधो आरे।
बहिरावत हाथ सवा हाथ, ऊंचा स्यू पड़ी वस्तु विख्यात॥ ते वस्तु न्हानी-फोरी जाणे, अजयणा न भ्यासे तिण टाणै। तिणरा कर स्यूं आहार पाणी बेहरे, जाण ववहार ना नहीं चेहरे।। नान्ही फोरी वस्तु किण ने कहिये, आचार्य कहै ते सरधहिये।
ते पिण बुद्धिवंत स्यूं मिल थापे, तिण ने उत्तम नहीं उथापे। (१८) सवा हाथ थकी उपरंत, एक चावळ ऊंचा थी पडत।
जद असूझतो घर थायो, इमहिज रांध्या मूंग मोठ तायो॥ ३६ (१९)
ओडो, छाबल्यो धान भर्यो पेख, ऊपर वस्त्र स्यूं ढांक्यो विशेख। वस्त्र रे पलो लागो बहिरातं, इम असूजतो घर थांत ।। धान भर्यो ओडा ऊपर पेख, मोटी वस्त्र री गांठ छै एक।
बहिरावता गांठ पलो लागंत, अजयणा न जाण्या लिये संत॥ (२१) बलि ओडो धान समेत, तथा ऊपर वस्त्र गांठ तेथ।
बहिरावता तन फरसावे, तो असूझतो घर थावे।। (२२) असंयति गृहस्थ तिण वार, बहिरावा काज खोल्यो किवाड।
ते रस्ते गोचरी न जाणो, बीजे रस्ते निर्दोष पिछाणो॥ (२३) घर मांहि ओरा रो किवाड़, कांइक बहिरावी खोल्यो तिवार।
जब तो असूझतो घर थायो, पहिला आरे कीधो इण न्यायो। कांइक बहिरी बलि बहिरावंत, मुनि वर्जत किवाड़ खोलंत।
वस्तु किवाड़ मांहली लीह, दातार असूझतो ते दीह ।। ४२ (२४) एक पोळ में घर दोय च्यार, तिण माहिले एक खोल्यो द्वार।
मुनि बहिरावा भाव आणो, तिण रस्ते पिण घर नहीं जाणो।। लोग आया गया तिण पंथ, एक मुहूर्त पाछे संत। पोळ में दूजा रे घर तिहां जायो, दूजा तो किवाड़ नहीं खोलायो॥
(२०)
३. दिन।
१. अयत्ना २. हल्की
पंरपरा नी जोड़ : ढा०६: ३६१