Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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नहीं। यां नै चतुरविध तीर्थ रा निंदक जाणवा। एहवा नै वांदे ते जिण आगन्या बारै छै। कदा कोइ फेर दिख्या ले ओरां साधा नै असाध सरधायवा नै, तो पिण उण नै साध सरधणो नहीं। उण नै छेरवियां तो उ आळ दे काढे, तिण री एक बात मानणी नहीं । उण तो अनंत संसार आरे कीधो दीसै छै। कदा कर्म धको दीधां टोळां सूं टलै तो उण रै टोला रा साध-साधव्यां रा अंस मात्र हूंता अणहूंता अवर्णवाद बोलवा रा अनंता सिद्धां री नै पांचो इ पदां री आण छै। पांचोइ पदां री साख सूं पचखांण छै। किण ही साध-साधव्यां री संका पडै ज्यूं बोलण रा पचखांण छै। कदा उ विटळ होय सूंस भांगे तो हळुकर्मी न्यायवादी तो न मानै। उण सरीषो विटळ कोइ मानै, तो लेखा में नहीं। हिवै किण ही नै छोड़णो मेलणो परै, किण ही चरचा बोल रो काम परै तो बुद्धिवांन साध विचार नै करणो। बलै सरधा रो बोल पिण बुद्धवंत हुवै ते विचार नै संचे बेसाणणो। कोइ बोल न बेसे तो ताणांतांण करणी नहीं। केवळियां में भळावणो। पिण खांच अंस मात्र करणी नहीं। किण ही नै कर्म धक्को देवे ते टोळा मां सूं न्यारी परै। अथवा टोळा बारै अथवा आप ही टोळा सूं न्यारो हुवै तो इण सरधा रा बाई भाई हुवै तिहां रहिणो नहीं। एक भाई बाई हुवै तिहां पिण रहिणो नहीं। वाटे वहितो कारण परियां रहै तो पांचू विगै नै सूंखड़ी खावा रा त्याग छै। अनंत सिद्धां री साख कर नै छै। बलै टोळा मांहे उपगरण करै ते, पाना परत लिखे ते, टोळा मांहे थकां परत पांना पातरादिक सर्व वस्तु जांचे ते साथे ले जावण रा त्याग छै। एक बोदो चोलपटो, मुंहपती, एक बोदी पछेवड़ी खंडिया उपरंत वोदा रजूहरण उपरंत साथे ले जावणो नहीं, उपगरण सर्व टोळा री नेश्राय साधां रा छै। ओर अंसमात्र साथे ले जावण रा पचखांण छै। अनंता सिद्धां री साख करै छै। कोइ पूछ-यां खेतरां में रहिण रा सूंस क्यूं कराया । तिण नै यूं कहिणो-रागाधेषो बधतो जाणं नै कलेस बधतो जांण नै उपगार घटतो जांण नै इत्यादिक अनेक कारण जांण नै कराया है। इसो गुणसठां रा लिखत में कह्यो। ___ तथा संवत् १८५० रे बरस भीखणजी स्वामी मर्यादा बांधी-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो। तथा गुरां नै कहणो, पिण ओरां नै न कहिणो। घणां दिन आड़ा घाल नै दोष बतायै तो प्राछित रो धणी उहीज छै।
तथा संवत् १८५२ रे बरस आर्या रे मर्यादा बांधी। तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्यों में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहिणो, तथा गुरां नै कहणौ और किण ही आगे कहिणा नहीं। किण ही आर्या दोष जांण ने सेव्यो हुवै ते पाना में लिख्यां बिनां विगै तरकारी खांणी नहीं। कोई साधु-साधवियां रा ओगुण काढे तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहणो-'स्वामी जी नै कहीजो' जिण रा परिणाम टोळा मांहे रहिण रा हुवै ते रहिजो, पिण टोळा बार हुआ पछै साधु-साधवियां रा ओगुण बोलण रा अनंत सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। बलै करली-करली मर्यादा बांधी त्यां में पिण ना
बीसवीं हाजरी : २८९