________________
सताईसवीं हाजरी
- पंच समिति तीन गुप्त पंच महाव्रत अखंड आराधणां। ईर्ष्या भाषा एषणा में सावचेत रहिणो। आहार पाणी लेणो ते पक्की पूछा करी लेणो। सूजतो आहार पिण आगला.रो अभिप्राय देख नै लेणो। पूजतां परिठवतां सावधांन पणे रहिणो। मन वचन काया गुप्ति में सावचेत रहिणो। तीर्थंकर री आज्ञा अखंड आराधणी। भीखणजी स्वामी सूत्र सिद्धांत देख नै श्रद्धा आचार प्रगट कीधा-विरत धर्म नै अविरत अधर्म। आज्ञा मांहे धर्म, आज्ञा बारै अधर्म। असंजती रो जीवणो बंछै ते राग, मरणो बंछे ते द्वेष, तिरणो बंछे ते वीतराग देव नो मार्ग। तथा विविध प्रकार नी मर्यादा बांधी।
किण ही साध आर्या में दोष देखे तो ततकाळ धणी ने कहणो, तथा गुरां नै कहणो, पिण ओरां नै न कहिणो। घणां दिन आडा घाल नै दोष बतावै तो प्राछित रो धणी उ हीज छै।
तथा संवत् १८५२ रे वरस आर्यां रे मर्यादा बांधी तिण में एहवो कह्यो-किण ही साध आर्या में दोष देखे तो ततकाळ धणी नै कहणो, पिण और किण ही आगै कहणो नही, ओर किण ही आर्या दोष जांण नै सेव्यो हुवै तो पाना में लिख्यां विना विगै तरकारी खांणी नही। कोइ साध-साधवियां रा अवगुण कादै तो सांभळण रा त्याग छै। इतरो कहिणो-'स्वामी जी नै कहिजो' जिण रा परिणाम टोळा माहै रहिण रा हुवै ते रहिजो। पिण टोळा बारै हुवा पछै साध-साधवियां रा ओगुण बोलण रा अनंत सिद्धां री साख करनै त्याग छै। बलै करली-करली मरजादा बांधां त्यां में पिण ना कहिण रा अनंता सिद्धां री साख कर नै त्याग छै। तथा चोतीसा रे वर्स आर्सा रे मरजादा बांधी तिण में कह्यो-ग्रहस्थ कनै टोळा रा साध आर्यां री नंद्या करै, तिण नै घणी अजोग जाणणी। तिण नै एकमास पांचू विगै रा त्याग छै। जितरी वार करै तिण नै जितरा मास पांच विगै खावा रा त्याग छै। जिण आर्यां साथे मेल्या तिण आर्यां भेळी रहै अथवा आर्या मांहोमांहि सेषेकाळ भेळी रहै। अथवा चोमासे भेळी रहै। त्यां रा दोष हुवै तो साधा सूं भेळा हुवा कह देणो। न कहै तो उतरो प्रायछित उण नै छै। टोळा सूं न्यारी हुवा री बात माने तिण नै चोर कहिजे, मूर्ख कहीजे।
तथा पचासा रा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-कर्म धक्को दीधां टोळा सूं टळे तो टोळा रा साध-साधवियां रा हुंता अणहुंता अवर्णवाद बोलण रा त्याग छ। टोळा नै असाध सरधनै नवी दिख्या लेवै तो पिण अठीरा साध-साधव्यां री संका घालण रा त्याग छै। उपगरण टोळा माहै करै ते, परत पाना लिखे जाचै ते, साथे ले जावण रा त्याग छै। तथा गुणसठा रा लिखत में कह्यो-किण ही नै कर्म थक्को देवै तो टे. 7 सूं न्यारो पड़े। अथवा
३२० तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था